
चर्चा में क्यों?
- भारत ने हाल ही में म्याँमार की काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (Kachin Independence Army – KIA) के साथ समझौता कर दुर्लभ-मृदा तत्त्वों के नमूने प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू की है। इस पहल का प्रमुख उद्देश्य चीन पर निर्भरता कम कर अपनी आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित और विविधतापूर्ण बनाना है।
- याद रहे चीन वैश्विक उत्पादन में सबसे आगे है, और भारत अपनी ज़रूरतों के लिए उस पर निर्भर है। चीन वैश्विक खनन उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी लगभग 60% और प्रसंस्कृत एवं स्थायी चुंबक उत्पादन में 90% है।
दुर्लभ मृदा खनिज
- दुर्लभ मृदा खनिज (Rare Earth Elements / REEs) कुल 17 तत्वों का समूह है। इनमें 15 लैंथेनाइड्स तत्व (लैंथेनम (La), सेरियम (Ce), प्रेजोडायमियम (Pr), नियोडिमियम (Nd), प्रोमेथियम (Pm), समैरियम (Sm), यूरोपियम (Eu), गैडोलीनियम (Gd), टेरबियम (Tb), डिस्प्रोसियम (Dy), होल्मियम (Ho), एर्बियम (Er), थ्यूलियम (Tm), येटरबियम (Yb), ल्यूटेटियम (Lu) और स्कैंडियम (Scandium) और यिट्रियम (Yttrium) भी शामिल हैं।
- इनमें अद्वितीय चुंबकीय, संदीप्ति (phosphorescent) और विद्युत रासायनिक गुण होते हैं, जिनके कारण ये उच्च-तकनीकी उद्योगों जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, संचार, स्वास्थ्य देखभाल और राष्ट्रीय रक्षा में महत्वपूर्ण हैं।
- ये पृथ्वी में प्रचुर मात्रा में होते हैं। इन तत्वों को ‘दुर्लभ’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि ये पृथ्वी की पर्पटी (Earth’s crust) में बड़ी मात्रा में एक स्थान पर केंद्रित नहीं पाए जाते। ये सामान्यतः कम सांद्रता में बिखरे होते हैं और प्रायः अन्य खनिजों के साथ मिश्रित रहते हैं। इनका बड़े भंडार खोजना कठिन होता है और इनसे शुद्ध तत्व निकालने की प्रक्रिया महँगी और जटिल होती है।
- इनकी चाँदी-सफेद धात्विक चमक होती है, जो इन्हें विशेष बनाती है।
दुर्लभ मृदा तत्त्व (REEs) के प्रकार
- दुर्लभ मृदा तत्त्व (REEs) को उनकी परमाणु संख्या (Atomic Number) के आधार पर दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है:
- हल्के दुर्लभ मृदा तत्त्व (Light Rare Earth Elements – LRR) – इनकी परमाणु संख्या 57 से 61 तक होती है। ये मुख्य रूप से लैंथेनाइड श्रृंखला के निचले सिरे पर पाए जाते हैं।
अनुप्रयोग (Applications):
- ऑप्टिकल ग्लास (Optical Glass) – कैमरा लेंस, दूरबीन आदि।
- सिरेमिक और पिगमेंट (Ceramics & Pigments) – विशेषकर टीवी स्क्रीन और रंगीन डिस्प्ले।
- भारी दुर्लभ मृदा तत्त्व (Heavy Rare Earth Elements – HRR) – इनकी परमाणु संख्या 62 और उससे अधिक होती है। ये लैंथेनाइड श्रृंखला के अंतिम छोर पर पाए जाते हैं। साथ ही यट्रियम (Y) और स्कैंडियम (Sc) भी इस समूह में सम्मिलित किए जाते हैं।
अनुप्रयोग (Applications):
- स्थायी चुंबक (Permanent Magnets) – इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs), पवन टरबाइन, ड्रोन और रोबोटिक्स में।
- उच्च तकनीकी रक्षा उपकरण – मिसाइल, रडार और एडवांस्ड हथियार प्रणालियाँ।
- ये दोनों समूह स्वच्छ ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और राष्ट्रीय रक्षा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- इनकी आपूर्ति की कमी और उच्च मांग कई देशों की औद्योगिक वृद्धि को प्रभावित करती है।
- भारत जैसे देशों के पास इन तत्त्वों के विशाल भंडार हैं, जो आर्थिक विकास को गति दे सकते हैं।
दुर्लभ मृदा खनिज के उत्खनन और प्रसंस्करण के पर्यावरणीय प्रभाव
- दुर्लभ मृदा खनिजों के प्रसंस्करण (processing) में प्रायः विभिन्न विलायकों (solvents) का उपयोग किया जाता है। इससे उत्पन्न होने वाला विषाक्त अपशिष्ट (toxic waste) मृदा, जल और वायुमंडल को गंभीर रूप से प्रदूषित कर सकता है।
- अधिक पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियाँ (eco-friendly technologies) विकसित की जा रही हैं, लेकिन इनका व्यापक उपयोग अभी तक नहीं हो रहा है।
- कुछ दुर्लभ मृदा अयस्कों में रेडियोधर्मी तत्व जैसे थोरियम (Thorium) या यूरेनियम (Uranium) पाए जाते हैं। इन्हें हटाने के लिए अक्सर अम्ल (acid) का प्रयोग किया जाता है।
- इस कारण इस क्षेत्र को स्वास्थ्य संबंधी जोखिम तथा कड़े पर्यावरणीय नियमों का सामना करना पड़ता है।
उपयोग (Uses)
- दुर्लभ मृदा तत्वों का उपयोग अनेक आधुनिक तकनीकी और औद्योगिक क्षेत्रों में किया जाता है, जैसे:
- उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स (Consumer Electronics) – मोबाइल, लैपटॉप, टीवी आदि।
- विद्युत वाहन (Electric Vehicles – EVs) – बैटरियों और मोटरों में।
- विमान इंजन (Aircraft Engines) – उच्च दक्षता और सुरक्षा के लिए।
- चिकित्सा उपकरण (Medical Devices) – इमेजिंग मशीन और अन्य उपकरणों में।
- तेल शोधन (Oil Refining) – उत्प्रेरक (catalyst) के रूप में।
- सैन्य अनुप्रयोग (Military Applications) – मिसाइल, रडार प्रणाली और उन्नत हथियार तकनीक में।
दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) के मामले में भारत की स्थिति :
- भारत के पास 6.9 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा भंडार है। यह विश्व में पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार है।
- भारत में अभी तक घरेलू स्तर पर दुर्लभ मृदा चुंबक का उत्पादन नहीं होता। भारत मुख्यतः चीन से आयातित चुंबकों पर निर्भर है, जो कि एक प्रमुख निर्यातक देश है। मार्च 2025 तक भारत ने 53,748 मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा चुंबकों का आयात किया। इनका उपयोग ऑटोमोबाइल, पवन टर्बाइन, चिकित्सा उपकरणों और अन्य विनिर्मित वस्तुओं में होता है।
- इंडियन रेअर अर्थ्स लिमिटेड (IREL) भारत में दुर्लभ मृदा यौगिकों का एकमात्र निर्माता है। जो भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग को परमाणु ऊर्जा और रक्षा अनुप्रयोगों हेतु सामग्री की आपूर्ति करती है। IREL दुर्लभ मृदा चुंबकों के व्यावसायिक उत्पादन के लिये जापान और कोरिया की कंपनियों के साथ साझेदारी की कोशिश कर रहा है।
- भारत अपनी प्रसंस्करण क्षमता विकसित करने के लिये कार्य कर रहा है।
- परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय (AMD) तटीय, आंतरिक और नदीय प्लेसर बालू क्षेत्रों में संसाधनों की वृद्धि हेतु अन्वेषण कार्य कर रहा है।
- IREL को भारत में मोनाज़ाइट (Monazite) खनिज से उच्च शुद्ध दुर्लभ मृदा ऑक्साइड का उत्पादन करने का अधिदेश प्राप्त है।
- IREL का ओडिशा में एक दुर्लभ मृदा निष्कर्षण संयंत्र और केरल में एक शोधन इकाई है।
- भारत ने वर्ष 2025 में राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) लॉन्च किया है। इस मिशन के अंतर्गत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) को वित्तीय वर्ष 2025 से 2031 तक 1,200 अन्वेषण परियोजनाएँ संचालित करने का दायित्व सौंपा गया है।
चिपवे-पंगवा (Chipwe-Pangwa) खनन क्षेत्र
- चिपवे-पंगवा म्यांमार के काचिन राज्य का एक क्षेत्र है जहाँ दुर्लभ मृदा खनिजों का महत्वपूर्ण खनन होता है, जो भारी दुर्लभ मृदाओं की वैश्विक आपूर्ति में योगदान देता है।
- दुर्लभ मृदा आपूर्ति श्रृंखला में अपनी भूमिका और ऊर्जा परिवर्तन के लिए ‘बलिदान क्षेत्र (sacrifice zone)’ के रूप में अपनी पहचान के कारण यह क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय ध्यान का केंद्र बन गया है।
काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (Kachin Independence Army- KIA)
- काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (Kachin Independence Army- KIA) म्यांमार के काचिन राज्य में एक प्रमुख जातीय सशस्त्र समूह है, जो 1961 में काचिन स्वतंत्रता संगठन (KIO) की सशस्त्र शाखा के रूप में स्थापित हुई थी। KIO एक समानांतर सरकार भी चलाती है।
- KIA, म्यांमार की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली जातीय सशस्त्र सेनाओं में से एक है, और इसका मुख्यालय चीनी सीमा के पास लाईज़ा (Liza) में स्थित है।
- यह म्यांमार सेना के खिलाफ स्वायत्तता के लिए लड़ती है, और इसके संचालन का प्रमुख क्षेत्र काचिन राज्य और उत्तरी शान राज्य है।
- काचिन छह जनजातियों का एक गठबंधन है, जिनका गृह क्षेत्र चीन के युन्नान, पूर्वोत्तर भारत और म्यांमार के काचिन राज्य में फैला हुआ है।
- अक्टूबर 2024 में उन्होंने काचिन राज्य में चिपवे-पंगवा (Chipwe-Pangwa) खनन क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया, जो डिस्प्रोसियम और टेरबियम सहित विश्व के अधिकांश भारी दुर्लभ मृदा खनिजों की आपूर्ति करता है।
निष्कर्ष
- भारत के पास विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार होते हुए भी चुंबक उत्पादन क्षमता का अभाव है और वह चीन पर निर्भर है। हालाँकि, IREL, AMD और GSI के प्रयासों से भारत अपनी प्रसंस्करण क्षमता विकसित करने और आयात-निर्भरता कम करने की दिशा में कार्य कर रहा है।