उपासना स्थल (विशेष उपबंध)अधिनियम, 1991

उपासना स्थल (विशेष उपबंध)अधिनियम, 1991

चर्चा में क्यों?

  • संभल की जामा मस्जिद को लेकर जारी विवाद के कारण, उपासना स्थल अधिनियम, 1991 चर्चा में है।

संभल जामा मस्जिद 

  • जिस संभल की जामा मस्जिद को लेकर विवाद जारी है, यह वास्तव में एक ‘संरक्षित स्मारक’ है, जिसे 22 दिसंबर, 1920 को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत अधिसूचित किया गया था। इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक भी घोषित किया गया है।
  • संभल की जामा मस्जिद का निर्माण मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान 1526 और 1530 के बीच हुआ था।
  • मस्जिद का निर्माण दिसंबर 1526 में बाबर के विश्वासपात्र सिपाहसालार हिंदू बेग की देखरेख में प्रारम्भ हुआ था।
  • जामा मस्जिद में एक बड़ा चौकोर हॉल और बीच में एक गुंबद है। इसकी स्थापत्य शैली उस दौर के विकसित हो रहे मुगल शैली को दर्शाती है।
  • बाबर ने अपने शासनकाल के दौरान तीन प्रमुख मस्जिदों – संभल की जामा मस्जिद , पानीपत की जमा मस्जिद और अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया था।

क्या है उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम – 1991

  • यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। जिसका प्रमुख उद्देश्य पूजा स्थलों के कथित ऐतिहासिक ‘रूपांतरण’ से उत्पन्न सभी विवादों को समाप्त करना था।
  • उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के अनुसार किसी भी उपासना स्थल का धार्मिक चरित्र (स्वरुप) वैसा ही बना रहना चाहिए, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 (स्वतंत्रता दिवस) को था।

उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम – 1991 के प्रमुख प्रावधान

  • अधिनियम की धारा – 3, किसी भी धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल को पूर्णतः या आंशिक रूप से किसी अन्य धार्मिक संप्रदाय के पूजा स्थल में परिवर्तित करने पर रोक लगाती है या यहां तक ​​कि उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी अन्य भाग के पूजा स्थल में भी परिवर्तित करने पर रोक लगाती है।
  • अधिनियम की धारा 4(1) के अनुसार, 15 अगस्त, 1947 को विद्यमान किसी उपासना स्थल का धार्मिक स्वरुप वैसा ही बना रहेगा, जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को था। 
  • अधिनियम की धारा 4(2) में उल्लेख किया गया है कि है 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरुप के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय, अधिकरण या किसी अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही स्वतः समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी। 
  • यदि 15 अगस्त, 1947 के बाद तथा इस अधिनियम के लागू होने से पहले किसी उपासना स्थल का धार्मिक स्वरुप बदला गया है और उससे संबंधित कोई वाद या अपील किसी न्यायालय में लंबित है, तो उसका निर्णय अधिनियम की धारा 4(1) के अनुसार होगा।
  • अधिनियम की धारा 5 के अनुसार, इस अधिनियम का कोई भी प्रावधान राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद मामले से संबंधित किसी भी मुकदमे, अपील या कार्यवाही पर लागू नहीं होगा।
  • अधिनियम की धारा 6 में इस अधिनियम का उल्लघंन करने पर अधिकतम 3 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।

यह अधिनियम निम्नलिखित मामलों में लागू नहीं होता है

  • यह अधिनियम ऐसे किसी पुरातात्त्विक स्थल पर लागू नहीं होगा, जो प्राचीन स्मारक व पुरातत्त्व स्थल एवं अवशेष अधिनियम, 1958 द्वारा संरक्षित है।
  • यदि कोई विवाद इस अधिनयम के लागू होने से पहले ही पूर्ण रूप से निपटाया जा चुका है, तो यह अधिनियम उस वाद – विवाद पर भी लागू नहीं होगा। 
  • ऐसा कोई विवाद जिसे इस अधिनियम के लागू होने से पहले ही दोनों पक्षों द्वारा आपसी सहमति से सुलझाया जा चुका है, तो ऐसे विवाद पर भी यह अधिनियम लागू नहीं होगा।

नोट- यद्यपि यह उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के आलोक में लाया गया था, किंतु इस विवाद को विशेष रूप से इस अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था, क्योंकि इस अधिनियम के पारित होने के समय यह विवाद पहले से ही न्यायालय में विचाराधीन था।

बिंदु –

  • प्राचीन स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाला कोई प्राचीन या ऐतिहासिक स्मारक है, तो उपासना स्थल(विशेष प्रावधान) अधिनियम उस पर लागू नहीं होता है। हालांकि, उपासना स्थल(विशेष प्रावधान) अधिनियम की धारा 16 में प्रावधान है कि संरक्षित स्मारक, जो पूजा स्थल है, का उपयोग उसके चरित्र के साथ असंगत किसी भी उद्देश्य के लिए नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, यदि संरक्षित स्मारक मस्जिद है, तो इसका उपयोग मंदिर के रूप में नहीं किया जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • मई 2022 में सुप्रीम कोर्ट में ज्ञानवापी मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ ने मौखिक टिप्पणी में कहा था कि उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के तहत धार्मिक स्थल की प्रकृति बदलने पर रोक है, लेकिन किसी जगह के धार्मिक चरित्र का पता लगाना इस अधिनियम का उल्लंघन नहीं है। इसका अर्थ यह है कि 15 अगस्त, 1947 को पूजा स्थल की प्रकृति की जांच की अनुमति दी जा सकती है, भले ही बाद में उस प्रकृति को बदला न जा सके।
  • मथुरा एवं ज्ञानवापी दोनों मामलों में मस्जिद पक्ष ने उपासना स्थल अधिनियम की इस व्याख्या को चुनौती दी है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर इसचुनौतीपर अंतिम बहस सुननी बाकी है कि क्या 1991 का अधिनियम ऐसी याचिका दायर करने पर भी रोक लगाता है या फिर केवल उपासना या पूजा की प्रकृति में अंतिम बदलाव करता है।
  • उपासना स्थल(विशेष प्रावधान) अधिनियम – 1991 की इस तरह की व्याख्या, अधिनियम की भावना और उसके लाये जाने के उद्देश्य के आधार पर,  अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन ही प्रतीत होती है। उपासना स्थल(विशेष प्रावधान) अधिनियम के तहत किसी धार्मिक स्थान का रूपांतरण वर्जित है, तो तार्किक रूप से यह निष्कर्ष निकलता है कि स्वतंत्रता की तिथि पर उसके धार्मिक चरित्र का निर्धारण भी वर्जित है। यदि आप किसी धार्मिक स्थान का रूपांतरण नहीं कर सकते, तो यह घोषणा करने का क्या उद्देश्य है कि उसका धार्मिक चरित्र कुछ और है? इस तरह की व्याख्या से शरारत के दरवाजे खुल जाते हैं। कोई भी व्यक्ति धार्मिक स्थल पर विवाद खड़ा करके परेशानी खड़ी कर सकता है और यह तर्क देकर सांप्रदायिक माहौल को गर्म रख सकता है कि 1947 का धार्मिक चरित्र निर्धारित किया जाना चाहिए।

इस संबंध में, दिसंबर 2021 में दिल्ली की एक सिविल कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश का उल्लेख किया जाना चाहिए, जिसमें कुतुब मीनार परिसर में कथित मंदिरों के जीर्णोद्धार की मांग करने वाली एक याचिका को शुरू में ही खारिज कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि उपासना स्थल(विशेष प्रावधान) अधिनियम

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