- गुरु रविदास जी मध्यकालीन भारतीय संत थे। इन्हें संत शिरोमणि संत गुरु की उपाधि दी गई है।
- इन्होंने रविदासीया, पंथ की स्थापना की और इनके रचे गए पदों में से 40 पद सिख पवित्र ग्रंथ गुरुग्रंथ साहिब में भी शामिल हैं।
- इन्होंने जात पात का घोर खंडन किया और आत्मज्ञान का मार्ग दिखाया।
- रविदास का जन्म – 1388 ईसवी में माघ पूर्णिमा के दिन (वाराणसी)।
- पिता – संतोख दास
- माता का नाम – कलसांं देवी
- पत्नी का नाम – लोना देवी।
- मृत्यु – 1518 (वाराणसी)
- रविदास चमार जाति में जन्में और जूते बनाने का काम किया करते थे। रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से ज्ञान प्राप्त किया था। इनका कोई गुरु नहीं था।
- इन्होंने ब्राह्मण धर्म में व्याप्त कुरीतियों और अज्ञानता के लिए आम जनमानस को धार्मिक अंधविश्वास और आडंबर से दूर रहने का संदेश दिया और कहा कि अगर मन पवित्र है तो गंगा में भी स्नान की आवश्यकता नहीं है । इस से सम्बंधित इनका एक दोहा बहुत ही प्रयोग किया जाता है – “मन चंगा तो कठौती में गंगा”। इस्लाम धर्म में फैली बुराइयों को भी इन्होंने समान रूप से अपनी अभिव्यक्ति में शामिल किया था ।
- उनका मानना था की वही काम करना चाहिए, जिसके लिए अंतरात्मा तैयार हो। यदि अंतरात्मा सही है तो इसे कठौते के जल में ही गंगास्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। इसी के बाद उपरोक्त मुहावरा प्रचलित हो गया।
- रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया।
- उनका विश्वास था कि राम, कृष्ण, करीम, राघव आदि सब एक ही परमेश्वर के विविध नाम हैं। वेद, कुरान, पुराण आदि ग्रन्थों में एक ही परमेश्वर का गुणगान किया गया है।
- कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
- वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा ॥
- चारो वेद के करे खंडौती । जन रैदास करे दंडौती।।
- रैदास की वाणी भक्ति की सच्ची भावना, समाज के व्यापक हित की कामना तथा मानव प्रेम से ओत-प्रोत होती थी। इसलिए उसका श्रोताओं के मन पर गहरा प्रभाव पड़ता था। उनके भजनों तथा उपदेशों से लोगों को ऐसी शिक्षा मिलती थी जिससे उनकी शंकाओं का सन्तोषजनक समाधान हो जाता था और लोग स्वतः उनके अनुयायी बन जाते थे।
- मीराबाई उनकी भक्ति-भावना से बहुत प्रभावित हुईं और उनकी शिष्या बन गयी थीं।
