मणिपुर में लगा राष्ट्रपति शासन

मणिपुर में लगा राष्ट्रपति शासन

संवैधानिक प्रावधान

  • संविधान के अनुच्छेद 174(1) के अनुसार, दो सत्रों के बीच छह महीने से अधिक का अंतर नहीं हो सकता।
  • मणिपुर विधानसभा का अंतिम सत्र 12 अगस्त 2024 को समाप्त हुआ था।
  • छह महीने की अवधि 12 फरवरी 2025 को समाप्त हो रही थी, लेकिन राजनीतिक गतिरोध के चलते नया सत्र नहीं बुलाया गया।
  • इस संवैधानिक संकट को टालने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया गया।
  • याद हो सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही मणिपुर में कानून व्यवस्था फेल होने की टिप्पणी की थी।

पृष्ठभूमि

  • मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 9 फरवरी 2025 को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को अपना इस्तीफ़ा सौंपा।
  • बीरेन सिंह के इस्तीफ़े के बाद नए मुख्यमंत्री के चयन पर सहमति नहीं बन पाई, जिससे राज्य में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ गई। इस राजनीतिक गतिरोध को देखते हुए राष्ट्रपति शासन लागू करने का निर्णय लिया गया।
  • याद हो मई 2023 से मणिपुर में जातीय हिंसा जारी है, जिसमें अब तक 250 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। हजारों लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा, जिससे मानवीय संकट गहरा गया। इस जातीय संघर्ष का कारण मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मांगना था, जिसका कुकी समुदाय ने विरोध किया।
  • इस विवाद ने राज्य को दो भागों में बांट दिया – इम्फाल घाटी में मुख्य रूप से मैतेई समुदाय का प्रभाव है। जबकी पहाड़ी क्षेत्र मे मुख्य रूप से कुकी समुदाय का प्रभाव है।
  • दोनों समुदायों ने अपने-अपने सशस्त्र समूह बना लिए, जिससे लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति और बिगड़ गई।
  • मणिपुर विधानसभा की राजनीतिक स्थिति
  • मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं। जिसमें बीजेपी के 37 विधायक, बीजेपी समर्थित सहयोगी दलों के 11 विधायक एवम् अन्य विपक्षी दलों के मात्र 12 विधायक हैं।
  • बीजेपी के पास बहुमत होने के बावजूद, अंतर्कलह और नेतृत्व को लेकर असहमति के कारण संकट खड़ा हुआ है।
  • बीरेन सिंह को लेकर बीजेपी के अंदर दो गुट बन गए थे – एक समर्थक गुट और दूसरा विरोधी गुट। विरोधी गुट बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बने रहने का विरोध कर रहा था और मुख्यमंत्री बदलने की मांग कर रहा था। कई विधायकों ने बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से बार-बार शिकायत की, लेकिन दिल्ली ने बीरेन सिंह को समय दिया।
  • बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, ऐसे नेता को चुनना जो दोनों समुदायों (मैतेई और कुकी) को स्वीकार्य हो, लेकिन इसमें असफलता मिली।
  • कुकी समुदाय बीरेन सिंह का विरोध कर रहा था, क्योंकि वे उन्हें अपने विरोधी के रूप में देखते थे।(नोट – बीरेन सिंह मैतेई समुदाय से हैं)।
  • मैतेई समुदाय किसी कुकी नेता को मुख्यमंत्री नहीं देखना चाहता था।
  • बीजेपी के कई कुकी विधायक भी विधानसभा में चुने गए हैं, जिससे पार्टी के लिए संतुलन बनाना मुश्किल हो गया।

अन्य बिंदु

  • नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के लिए 2014 के बाद यह पहला अवसर है, जब उसे अपने ही पार्टी के शासन वाले राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, यदि केंद्र सरकार समय रहते मुख्यमंत्री बदल देती, तो यह संकट टल सकता था।
  • मणिपुर में जारी जातीय हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता ने राज्य को संवैधानिक संकट की ओर धकेल दिया।
  • बीजेपी के अंदर गुटबाजी, नेतृत्व संकट, और सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणियों के बाद राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा।
  • अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि बीजेपी इस संकट से कैसे निपटती है और मणिपुर में स्थिरता कैसे बहाल होती है।

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