मध्यप्रदेश, भारत का हृदय स्थल, प्राचीन काल से ही संस्कृति, सभ्यता और इतिहास की महान धरोहर रहा है। यह वह भूमि है जहाँ मानव सभ्यता के प्रारंभिक स्वरूप से लेकर आधुनिक राज्य निर्माण तक के असंख्य ऐतिहासिक परिवर्तन घटित हुए। भीमबेटका की गुफाओं से लेकर सांची के स्तूपों तक, महाकालेश्वर के मंदिर से लेकर खजुराहो की कला तक मध्यप्रदेश का इतिहास भारतीय संस्कृति की विविधता और निरंतरता का अद्भुत प्रमाण प्रस्तुत करता है।
इस पुस्तक “मध्यप्रदेश का इतिहास” में राज्य के समग्र ऐतिहासिक विकास को क्रमबद्ध और तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इसमें प्रागैतिहासिक काल से लेकर आधुनिक युग तक के प्रमुख कालखंडों, शासकों, सांस्कृतिक केंद्रों तथा सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों का सम्यक् विवरण दिया गया है। विशेष रूप से भीमबेटका, हथनौरा, एरण, विदिशा, उज्जैन, महेश्वर और सांची जैसे पुरातात्विक स्थलों की खोज और उनके ऐतिहासिक महत्व को विस्तार से समझाया गया है।
मध्यप्रदेश का इतिहास केवल राजवंशों और युद्धों की कथा नहीं है, बल्कि यह यहाँ के आम जनजीवन, उनकी कला, भाषा, धर्म और संस्कृति के विकास की कहानी भी है। यह प्रदेश न केवल मालवा, बुंदेलखंड, बघेलखंड, निमाड़ और महाकौशल जैसे भौगोलिक क्षेत्रों में विभाजित है, बल्कि प्रत्येक क्षेत्र ने भारतीय इतिहास को अपनी विशिष्ट पहचान और योगदान दिया है।
इस ग्रंथ में मौल्यवान ऐतिहासिक तथ्यों को सरल, सुसंगठित और प्रमाणिक रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है ताकि यह विद्यार्थी, शोधार्थी तथा प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों—सभी के लिए उपयोगी सिद्ध हो सके। साथ ही इसमें उन प्रमुख घटनाओं का भी समावेश किया गया है जिन्होंने मध्यप्रदेश को भारत के सांस्कृतिक और राजनैतिक मानचित्र पर विशेष स्थान प्रदान किया।
हमारे देश का इतिहास तभी पूर्ण समझा जा सकता है जब हम मध्यप्रदेश के इतिहास को समझें, क्योंकि यही वह भूमि है जहाँ प्रागैतिहासिक मानव ने अपने अस्तित्व की पहचान बनाई, जहाँ बौद्ध धर्म ने अपने उपदेशों का प्रचार किया, जहाँ महाकाल और महेश्वर की नगरी ने अध्यात्म और कला का संगम प्रस्तुत किया।
इस पुस्तक के माध्यम से पाठकों को मध्यप्रदेश के गौरवशाली अतीत की यात्रा कराने का विनम्र प्रयास किया गया है। आशा है कि यह पुस्तक इतिहासप्रेमियों, शिक्षकों, छात्रों और सामान्य पाठकों के लिए समान रूप से ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक सिद्ध होगी।
अंत में, लेखक उन सभी विद्वानों, शोधकर्ताओं और पुरातत्वविदों का आभार व्यक्त करता है जिनके अध्ययनों और अनुसंधानों से इस पुस्तक की सामग्री को समृद्धि मिली।






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