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एम्बरग्रीस: “व्हेल उल्टी” के नाम से प्रसिद्ध एक दुर्लभ पदार्थ

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  • एम्बरग्रीस, जिसे आमतौर पर “व्हेल उल्टी” कहा जाता है, एक ठोस और मोमी पदार्थ है जो शुक्राणु व्हेल (Sperm Whale) के पाचन तंत्र में उत्पन्न होता है।
  • यह इत्र उद्योग में एक अत्यधिक मूल्यवान सुगंध-वर्धक (fixative) के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पारंपरिक चिकित्सा और मसाले के रूप में भी इसका ऐतिहासिक उपयोग मिलता है।
  • इसका मूल्य मुख्यतः इसकी दुर्लभता और सुगंध को स्थायी एवं गहन बनाने की विशिष्ट क्षमता के कारण है। उच्च कीमत के चलते यह अक्सर तस्करों के निशाने पर रहता है।

गठन (Formation) :

  • एम्बरग्रीस तब बनता है जब स्क्विड की चोंच जैसे अपचनीय अवशेष (जो शुक्राणु व्हेल का प्रमुख भोजन हैं) व्हेल की आंत में फँसकर जलन उत्पन्न करते हैं। शरीर इन अवशेषों को ढकने के लिए एक स्राव (secretion) उत्पन्न करता है।
  • समय के साथ यह स्राव कठोर होकर एम्बरग्रीस का रूप ले लेता है। बाद में व्हेल इसे पाचन तंत्र से बाहर निकाल देती है, और यह समुद्र में तैरता रहता है।

स्वरूप और गुण (Appearance and Properties) :

  • ताजा एम्बरग्रीस से समुद्री और मल जैसी तीखी गंध आती है। लेकिन जब यह लंबे समय तक समुद्री पानी और हवा के संपर्क में रहता है, तो इसमें मीठी, मिट्टी जैसी और कस्तूरी जैसी मनमोहक सुगंध विकसित हो जाती है।
  • इसका रंग गहरे भूरे और काले से लेकर हल्के भूरे और सफेद तक हो सकता है। हल्के रंग के टुकड़े प्रायः पुराने और अधिक परिष्कृत माने जाते हैं।

इत्र उद्योग में उपयोग (Use in Perfumery) :

  • एम्बरग्रीस इत्र-निर्माण में एक अत्यंत मूल्यवान घटक है। यह एक प्राकृतिक फिक्सेटिव के रूप में कार्य करता है, यानी यह अन्य सुगंध अवयवों के वाष्पीकरण की गति को धीमा करता है और सुगंध को लंबे समय तक टिकाए रखता है।
  • उच्च गुणवत्ता वाले इत्रों में इसका प्रयोग अक्सर कस्तूरी जैसे अन्य प्राकृतिक अवयवों के साथ मिलाकर जटिल और टिकाऊ सुगंध तैयार करने के लिए किया जाता है।

तस्करी और कानूनी स्थिति (Smuggling and Legal Status) :  

  • इसकी दुर्लभता और ऊँचे मूल्य के कारण एम्बरग्रीस की अवैध तस्करी प्रचलित है, खासकर तटीय क्षेत्रों में।
  • भारत में इसका व्यापार वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के अंतर्गत प्रतिबंधित है, क्योंकि शुक्राणु व्हेल एक संरक्षित प्रजाति है।

ऐतिहासिक और अन्य उपयोग (Historical and Other Uses) :

  • इतिहास में एम्बरग्रीस का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा, धूपबत्ती और मसाले के रूप में किया जाता रहा है।
  • हालांकि आज इसके अधिकांश उपयोग पर प्रतिबंध है, फिर भी इत्र उद्योग में यह अब भी सबसे अधिक मांग वाला प्राकृतिक पदार्थों में से एक है।
  • शुक्राणु व्हेल एक विशाल समुद्री जीव है, जो दुनिया के लगभग सभी महासागरों में पाया जाता है। यह दांतेदार व्हेल की सबसे बड़ी प्रजाति है और अपने अत्यधिक बड़े सिर के लिए जानी जाती है। नर शुक्राणु व्हेल, मादाओं की तुलना में कहीं अधिक बड़े होते हैं।

पहचान (Identification)

  • इसका सबसे विशिष्ट लक्षण विशाल और चौड़ा सिर है, जो इसके शरीर के लगभग एक-तिहाई हिस्से को घेरता है।
  • इसका शरीर प्रायः गहरे भूरे रंग का होता है।
  • पृष्ठीय पंख के स्थान पर इसकी पीठ पर एक छोटा-सा कूबड़ होता है।
  • इसकी पूंछ त्रिकोणीय आकार की होती है।
  • इसके सिर के ऊपरी हिस्से के बाईं ओर एक ही S-आकार का ब्लोहोल होता है, जिससे यह सांस लेती है।
  • शुक्राणु व्हेल गहरे समुद्र में गोता लगाने की क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं। कुछ व्हेल लगभग 2,800 मीटर की गहराई तक गोता लगा चुकी हैं।
  • इसका मुख्य भोजन विशाल स्क्विड और अन्य गहरे समुद्र के जीव हैं।

अन्य विशेषताएँ (Other Features)

  • किसी भी जानवर में सबसे बड़ा मस्तिष्क शुक्राणु व्हेल का होता है, जिसका वजन लगभग 21 पाउंड तक हो सकता है।
  • यह व्हेल बहुत ऊँची आवाज़ें निकाल सकती है, जिनमें क्लिक और बज़ शामिल हैं। इन ध्वनियों का उपयोग शिकार खोजने और आपस में संवाद करने के लिए किया जाता है।
  • इसके पेट में बनने वाला मोमी पदार्थ एम्बरग्रीस “समुद्र का सोना” कहलाता है, जिसका ऐतिहासिक रूप से उपयोग इत्र बनाने में किया जाता है।
  • शुक्राणु व्हेल आज कई खतरों का सामना कर रही हैं। इनमें जहाज़ों से टकराना, मछली पकड़ने वाले जाल में उलझना और समुद्री प्रदूषण प्रमुख हैं।
  • स्क्विड, टेउथिडा (Teuthida) गण के समुद्री शिरस्यपाद (cephalopods) जीव हैं, जिनकी लगभग 300 प्रजातियों पायी जाती हैं।
  • स्क्विड की चोंच काइटिन से बनी होती है, जो एक मजबूत, लेकिन लचीला पदार्थ है।

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