चर्चा में क्यों?
- भारत सरकार ने 16 जून, 2025 को जनगणना अधिनियम, 1948 की धारा 3 के तहत जनगणना-2027 आयोजित करने की अधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित करने का निर्णय लिया है।
- यह अधिसूचना मार्च 2019 में जारी उस आदेश को प्रतिस्थापित करती है जिसमें वर्ष 2021 में जनगणना कराने की योजना थी, परंतु कोविड-19 महामारी के कारण इसमें विलंब हुआ।
- इस बार की जनगणना दो चरणों में कराई जाएगी और इसमें जातीय जनगणना भी शामिल होगी, जो भारतीय जनगणना इतिहास में एक महत्वपूर्ण बदलाव है।
जनगणना अधिनियम की धारा 3 का प्रावधान
- धारा 3 के अनुसार, केंद्र सरकार जब भी आवश्यक समझे, राजपत्र में अधिसूचना जारी कर देश के किसी भाग में जनगणना आयोजित करने का निर्णय ले सकती है।
- यह प्रावधान जनगणना की लचीलापन युक्त संरचना को दर्शाता है, जिसमें समय और क्षेत्र के अनुसार बदलाव संभव है।
- जनसंख्या और जातीय जनगणना: दो चरणों में
- पहाड़ी और हिमाच्छादित क्षेत्रों जैसे लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जनगणना और जातीय गणना 1 अक्टूबर 2026 से शुरू होगी। 1 अक्टूबर 2026 की मध्यरात्रि (00:00 बजे) पहाड़ी क्षेत्रों के लिए संदर्भ तिथि होगी ।
- देश के मैदानी राज्यों में जनगणना और जातीय गणना का कार्य 1 मार्च 2027 से आरंभ होगा। इन सभी क्षेत्रों के लिए संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 की मध्यरात्रि (00:00 बजे) होगी।
- यह अंतर मौसमीय परिस्थितियों और भौगोलिक दुर्गमता के कारण सटीक डेटा संग्रह सुनिश्चित करने हेतु किया गया है।
भारतीय जनगणना: ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
- भारत में पहली गैर-समकालिक जनगणना वर्ष 1872 में विभिन्न क्षेत्रों में करवाई गई थी।
- पहली संगठित और समन्वित जनगणना वर्ष 1881 में तत्कालीन जनगणना आयुक्त डब्ल्यू.सी. प्लोडेन के अधीन आयोजित की गई थी।
- तब से यह हर 10 वर्ष में आयोजित की जाती है, हालांकि यह दशकीय जनगणना संवैधानिक बाध्यता नहीं है, बल्कि एक परंपरा बन गई है।
जातीय जनगणना का समावेश: ऐतिहासिक निर्णय
- केंद्र सरकार ने जनसंख्या के साथ जातियों की गणना करने का निर्णय लिया है, जिससे समाज के सामाजिक, आर्थिक और जातिगत संरचना का विस्तृत आँकलन संभव होगा।
- यह निर्णय लंबे समय से चली आ रही मांगों के उत्तर में आया है और इससे नीति निर्माण में सामाजिक न्याय को बढ़ावा मिलने की संभावना है।
जनगणना चक्र में बदलाव
- अब तक भारत में जनगणना का चक्र 1951, 1961, 1971…2021 तक चला आ रहा था, जो हर 10 वर्ष पर आधारित था।
- लेकिन कोविड-19 के कारण हुई देरी के परिणामस्वरूप अगली जनगणना अब 2027 में हो रही है, जिससे भविष्य का चक्र 2027-2037, फिर 2037-2047 के रूप में परिवर्तित हो जाएगा।
कानूनी और संस्थागत ढांचा
- जनगणना अधिनियम, 1948 जनगणना संचालन हेतु कानूनी आधार प्रदान करता है और इसमें जनगणना अधिकारियों की भूमिकाओं को परिभाषित किया गया है।
- मई 1949 में सरकार ने जनगणना संचालन के लिए गृह मंत्रालय के अधीन एक स्थायी जनगणना संगठन की स्थापना की।
- वर्ष 1969 में पारित जन्म एवं मृत्यु पंजीकरण अधिनियम के तहत इस संगठन को महत्त्वपूर्ण आंकड़ों के अभिलेखन की जिम्मेदारी भी दी गई।
भारतीय जनगणना का महत्व
- भारतीय जनगणना दुनिया की सबसे बड़ी जनगणना अभ्यासों में से एक है।
- यह देश के लिए जनसांख्यिकीय, सामाजिक-आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक आंकड़ों का सबसे प्रामाणिक स्रोत है।
- जनगणना के आंकड़ों का उपयोग नीति निर्माण, योजना निर्माण, संसाधन आवंटन और विकास कार्यक्रमों के मूल्यांकन में होता है।
परीक्षा उपयोगी तथ्य
- जनगणना 2027 के लिए अधिकांश क्षेत्रों की संदर्भ तिथि क्या है? – 1 मार्च 2027
- जम्मू-कश्मीर व लद्दाख जैसे क्षेत्रों के लिए संदर्भ तिथि क्या है? – 1 अक्टूबर 2026
- जनगणना अधिनियम कब पारित हुआ था? – 1948
- भारत में पहली संगठित जनगणना कब हुई थी? – 1881
- भारत में स्थायी जनगणना संगठन की स्थापना कब हुई थी? – मई 1949
- पहली गैर-समकालिक जनगणना भारत में कब हुई थी? – 1872
