चक्की नदी: एक महत्वपूर्ण जीवनरेखा
- धौलाधार पर्वतमाला से निकलने वाली चक्की नदी, हिमाचल प्रदेश और पंजाब के मध्य से बहते हुए पठानकोट के पास ब्यास नदी में मिलती है। यह नदी मुख्यतः हिमपात और वर्षा के जल से पोषित होती है और इन क्षेत्रों के लिए एक अहम जलस्रोत है। लेकिन, अवैध मानवीय गतिविधियों के कारण इसकी पारिस्थितिकी पर गंभीर संकट खड़ा हो गया है।
रेत खनन और स्टोन-क्रशिंग के प्रभाव
- अवैध रेत खनन और स्टोन-क्रशिंग यूनिट्स के बढ़ते प्रकोप ने चक्की नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित किया है।
- इसके चलते निम्न संस्याएँ आ रही हैं, जैसे –
- 1. नदी तटों का क्षरण हो रहा है, जिससे भूमि की संरचनात्मक मजबूती कमजोर पड़ रही है।
- 2. नदी तल का स्तर गिर रहा है, जिससे जल उपलब्धता और पारिस्थितिकी तंत्र पर संकट गहरा रहा है।
- 3. जलीय और स्थलीय जैव विविधता को नुकसान हो रहा है, जिससे नदी का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
ब्यास नदी: ऐतिहासिक और क्षेत्रीय महत्व
- जिस ब्यास नदी में चक्की नदी मिलती है, वह पंजाब की पांच प्रमुख नदियों में से एक है और राज्य के सांस्कृतिक और कृषि महत्व का केंद्र है।
- ऐतिहासिक रूप से इसे अर्जिकी या हायफेसिस के नाम से जाना जाता था।
- चक्की नदी जैसी सहायक नदियों को नुकसान पहुँचने से न केवल पंजाब की कृषि अर्थव्यवस्था बल्कि जल सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा है।
कार्रवाई की आवश्यकता
- संयुक्त समिति ने एनजीटी से अपील की है कि दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाएं और चक्की नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बहाल करने के लिए ठोस उपाय किए जाएं।
- विशेषज्ञों ने निम्नलिखित पर जोर दिया है -अवैध रेत खनन और स्टोन-क्रशिंग गतिविधियों को तुरंत रोका जाए।
- क्षतिग्रस्त नदी तटों और पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली की जाए।
- स्थानीय प्रशासन द्वारा नदी की गतिविधियों की सख्त निगरानी की जाए।
- चक्की नदी संकट हिमाचल प्रदेश और पंजाब की जीवनरेखाओं को बचाने के लिए स्थायी उपाय अपनाने की चेतावनी है।
- यदि समय रहते प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो पर्यावरणीय क्षति के गंभीर और दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।