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डायोस्कोरिया बालकृष्णनी: पश्चिमी घाट का अनछुआ जैविक खजाना

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  • केरल के वायनाड जिले के पश्चिमी घाट क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने एक नई खाद्य कंद प्रजाति की खोज की है, जिसे डायोस्कोरिया बालकृष्णनी (Dioscorea balakrishnanii) नाम दिया गया है।
  • यह खोज भारतीय जैव विविधता की समृद्धता के साथ-साथ भोजन सुरक्षा और पारंपरिक ज्ञान के महत्व को भी दर्शाती है।
  • डायोस्कोरिया बालकृष्णनी डायोस्कोरिया वंश से संबंधित है, जिसमें यम जैसी कई कंद फसलें आती हैं।
  • स्थानीय आदिवासी कट्टुनायकर समुदाय इसे ‘चोला किझंगु’ के नाम से जानते हैं। यह प्रजाति पकाने योग्य है और स्वाद में उत्तम मानी जाती है।
  • इसके कम ग्लायसेमिक इंडेक्स के कारण यह मधुमेह रोगियों के लिए उपयोगी हो सकती है।
  • इस खोज में एम.एस. स्वामिनाथन रिसर्च फाउंडेशन के पिचन एम. सलीम, सनातन धर्म कॉलेज, अलप्पुझा के डॉ. जोस मैथ्यू और केरल कृषि विश्वविद्यालय के डॉ. एम.एम. साफीर शामिल थे।
  • नई प्रजाति का नाम डॉ. वी. बालकृष्णन के सम्मान में रखा गया, जो वायनाड में जैव विविधता संरक्षण और अनुसंधान में अग्रणी हैं।
  • इससे पहले भी एक पौधा Tylophora balakrishnanii उनके नाम पर रखा जा चुका है।
  • इस प्रजाति पर पिछले 10 वर्षों से अध्ययन किया गया, क्योंकि डायोस्कोरिया वंश में पुरुष और महिला पौधे अलग-अलग होते हैं।
  • शोध से यह स्पष्ट हुआ कि यह प्रजाति केवल सदाबहार जंगलों की शोलाओं (shola forests) में पाई जाती है। टीम ने इसके फूल, वन्य संरचना और विकास पैटर्न का दस्तावेजीकरण किया।
  • डॉ. बालकृष्णन ने आदिवासी समुदायों के साथ मिलकर उनकी पारंपरिक वनस्पति जानकारी का संरक्षण किया। उनका मानना है कि “समुदाय असली वनस्पति वैज्ञानिक हैं और उनकी ज्ञान प्रणाली की रक्षा जैव विविधता संरक्षण जितनी ही जरूरी है।”

निष्कर्ष:

  • डायोस्कोरिया बालकृष्णनी की खोज जैव विविधता संरक्षण, पारंपरिक ज्ञान और भविष्य की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। यह दिखाती है कि पश्चिमी घाट जैसे क्षेत्र अभी भी अनछुए जैविक रहस्यों से भरे हैं, जिन्हें पहचानकर संरक्षित करने की आवश्यकता है।

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