डॉल्फिन संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम
- भारतीय वन्यजीव संरक्षण में एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में, गंगा नदी डॉल्फिन को पहली बार हल्के वजन के ट्रैकिंग डिवाइस से टैग किया गया है।
- यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ के अंतर्गत हासिल किया गया।
- इस पहल को वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII), असम वन विभाग, और जैव विविधता संरक्षण समूह Aranyak के सहयोग से पूरा किया गया।
टैगिंग का महत्व
- ब्रह्मपुत्र की एक सहायक नदी कुलसी से एक स्वस्थ नर डॉल्फिन को टैग कर पशु-चिकित्सा देखरेख में छोड़ा गया।
हल्के वजन के ये टैग डॉल्फिन की गतिविधि में बाधा न डालते हुए आर्गोस सैटेलाइट सिस्टम के साथ सिग्नल भेजने में सक्षम हैं, भले ही डॉल्फिन की सतह पर रहने की अवधि मात्र 5-30 सेकंड की हो। - इस टैगिंग का उद्देश्य है: –
- मौसमी और प्रवास पैटर्न को समझना
- क्षेत्र, वितरण और आवास उपयोग का विश्लेषण करना
- संरक्षण रणनीतियों के लिए डेटा प्रदान करना
एक महत्वपूर्ण संरक्षण पहल
- राष्ट्रीय CAMPA प्राधिकरण द्वारा वित्त पोषित यह पहल गंगा नदी डॉल्फिन के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण कदम है।
यह डॉल्फिन भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव है। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसे एक “ऐतिहासिक उपलब्धि” बताया और कहा कि यह परियोजना डॉल्फिन के संरक्षण प्रयासों को और गहराई देगी।
इसका महत्व क्यों है
- गंगा नदी डॉल्फिन एक अनोखा और लगभग अंधा जलचर है, जो इकोलोकेशन के माध्यम से नेविगेट और शिकार करता है।
- गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और करनफुली नदी प्रणालियों में दुनिया की 90% डॉल्फिन आबादी भारत में पाई जाती है। इसके बावजूद, इस प्रजाति की संख्या में तीव्र गिरावट के मुख्य कारण हैं – आवास का विखंडन, प्रदूषण, जलमार्गों का विकास।
- वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, गंगा नदी डॉल्फिन एक शीर्ष शिकारी और छत्र प्रजाति है, जो नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को बनाए रखने और नदी पर निर्भर समुदायों का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
आगे की राह
- वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के निदेशक वीरेन्द्र आर. तिवारी ने कहा, “डॉल्फिन को टैग करना इस प्रजाति के लिए आवश्यक साक्ष्य-आधारित संरक्षण रणनीतियों में योगदान देगा।” अन्य राज्यों में भी गंगा नदी डॉल्फिन की टैगिंग की योजना बनाई जा रही है ताकि उनकी जनसंख्या और आवास संबंधी आवश्यकताओं की व्यापक समझ हो सके।
- परियोजना की अन्वेषक विष्णुप्रिया कोलिपाकम ने कहा कि डॉल्फिन की पारिस्थितिक जरूरतों को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिससे नदी के महत्वपूर्ण आवासों को संरक्षित किया जा सके और जल संसाधनों पर निर्भर हजारों लोगों की आजीविका को सुरक्षित किया जा सके।
एक स्थायी भविष्य की ओर
- ‘प्रोजेक्ट डॉल्फिन’ के अंतर्गत यह पहल भारत की सबसे कीमती जलीय प्रजातियों में से एक को सुरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो हमारी नदियों की सेहत और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुनिश्चित करेगा।