भारत में पोषण सुरक्षा और कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से नीति आयोग ने “दालों में तीव्र वृद्धि हेतु रणनीतियाँ और मार्ग” शीर्षक से एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट राज्यों और जिलों की विशिष्ट चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ऐसी कृषि रणनीतियों की सिफारिश करती है, जो देश में दाल उत्पादन के संतुलित और टिकाऊ विकास को सुनिश्चित कर सकें।
दालों में आत्मनिर्भरता की दिशा में बढ़ते कदम
- नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद के अनुसार, यदि वर्तमान विकास दर बनी रही तो भारत अगले 10 वर्षों में दालों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है।
- 2015-16 में दाल उत्पादन घटकर केवल 1.63 करोड़ टन रह गया था, जिसके कारण लगभग 60 लाख टन दालों का आयात करना पड़ा।
- सरकारी प्रयासों के फलस्वरूप 2022-23 तक उत्पादन में 59.4% की वृद्धि होकर यह 2.6 करोड़ टन तक पहुँच गया।
- इस अवधि में उत्पादकता में 38% की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
- आयात पर निर्भरता घटकर 29% से केवल 10.4% रह गई।
कृषि विविधता और क्षेत्रीय योगदान
- भारत की विविध जलवायु परिस्थितियाँ खरीफ, रबी और ग्रीष्मकालीन मौसमों में 12 प्रकार की दालों की खेती के लिए उपयुक्त हैं।
- वर्तमान में लगभग 80% दाल उत्पादन वर्षा आधारित क्षेत्रों से होता है, जो 5 करोड़ से अधिक किसानों की आजीविका का प्रमुख साधन है।
- दालों का उत्पादन मुख्यतः मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में केंद्रित है, जो मिलकर 55% राष्ट्रीय उत्पादन का योगदान देते हैं।
- देश के शीर्ष 10 राज्य कुल मिलाकर 91% दाल उत्पादन सुनिश्चित करते हैं।
निष्कर्ष
नीति आयोग की यह रिपोर्ट केवल उत्पादन बढ़ाने की दिशा में मार्गदर्शन नहीं देती, बल्कि कृषि आधारित आजीविका को मजबूत करने, पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने और दालों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का स्पष्ट विज़न भी प्रस्तुत करती है। यदि सुझाई गई रणनीतियों को राज्य और जिला स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो आने वाले वर्षों में भारत न केवल दालों में आत्मनिर्भर बनेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी अपनी स्थिति को और सशक्त कर सकेगा।
