- केंद्र सरकार ने 24 अक्टूबर 2024 को भारत के 51वें मुख्य न्यायधीश के रूप में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की नियुक्ति की अधिसूचना जारी की।
- वे 11 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ लेंगे तथा साथ ही वह इस पद पर 13 मई 2025 तक रहेंगे।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (2) के प्रावधानों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सर्वोच्च न्यायालय और राज्यों में उच्च न्यायालयों के कुछ न्यायाधीशों (राष्ट्रपति इस उद्देश्य के लिये जितने न्यायाधीशों के परामर्श को उपयुक्त समझे) के परामर्श के बाद की जाती है।
- मुख्य न्यायाधीश D. Y. चंद्रचूड़, जो 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत हो रहे हैं, ने 17 अक्टूबर को न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का नाम अपने उत्तराधिकारी के रूप में अनुशंसित किया था।
- न्यायमूर्ति खन्ना 1993 में दिल्ली बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकित हुए थे। न्यायमूर्ति खन्ना ने जिला न्यायालय से वकालत प्रारंभ की और वह दिल्ली उच्च न्यायालय में भी वकालत किये।
- वे आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थाई वकील रहे। उन्होंने NCR दिल्ली के स्थाई वकील के रूप में भी काम किया और उच्च न्यायालय के अतिरिक्त लोक अभियोजन और न्याय मित्र के रूप में पेश हुए।
- न्यायमूर्ति खन्ना को 2005 में दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पदोन्नति किया गया और 2006 में स्थाई न्यायाधीश बनाया गया।
- न्यायमूर्ति खन्ना को 18 जनवरी 2019 को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त किया गया। अखिल भारतीय आधार पर उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संयुक्त वरिष्ठता में न्यायमूर्ति खन्ना 33वें स्थान पर थे, लेकिन तत्कालीन भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाले तत्कालीन सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम ने योग्यता और ईमानदारी के आधार पर उन्हें दूसरों पर वरिष्ठता दी थी। (याद होगा सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, वर्तमान में राज्यसभा सदस्य भी है और इनके नामांकन से न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभों पर बहस और आलोचना भी शुरू हो गई थी।)
- न्यायमूर्ति खन्ना ने सर्वोच्च न्यायालय की उसे पीठ का नेतृत्व किया, जिसने दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रचार करने के लिए अंतरिम जमानत दी थी।
- न्यायमूर्ति खन्ना उस संविधान पीठ के भी सदस्य थे, जिसने जम्मू कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 को कमजोर करने के फैसले को बरकरार रखा था।