- हाल ही में, रीवा के प्रोफेसर डॉ. मुकेश एंगल और उनके साथियों ने सिरमौर के जंगलों में कई नई रॉक पेंटिंग्स की खोज की।
- मध्य प्रदेश के रीवा जिले के सिरमौर क्षेत्र में घने जंगलों और पहाड़ी इलाकों के बीच 10,000 साल पुराने शैलचित्रों (रॉक पेंटिंग्स) की खोज की गई है। इन शैल चित्रों की भीमबेटका से तुलना की जा रही है, जो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
- इन शैलचित्रों को इतिहास और मानव सभ्यता के शुरुआती दिनों का अमूल्य प्रमाण माना जा रहा है। रीवा जिले का सिरमौर क्षेत्र घने जंगलों, ऊंची पहाड़ियों, और प्राचीन जलप्रपातों से घिरा हुआ है।
- 1870 के दशक में ब्रिटिश पुरातत्वविद अलेक्जेंडर कनिंघम ने सिरमौर में इन शैलचित्रों का पहला सर्वेक्षण किया था।
- इन जंगलों के बीच दुर्लभ रॉक पेंटिंग्स मौजूद हैं, जिससे आदिमानवों की जीवनशैली, कला, और संस्कृति की झलक दिखाती हैं।
- शैलचित्रों में इस्तेमाल रंग प्राकृतिक और टिकाऊ हैं, इनमें प्राकृतिक जीवन का सटीक चित्रण किया गया है। इन चित्रों में हाथियों की सवारी, शिकार के दृश्य, और नृत्य करते आदिमानवों को गेरुआ रंग में उकेरा गया है।
- सिरमौर के शैलचित्र संरक्षण के अभाव में तेजी से खराब हो रहे हैं। बारिश और बदलते मौसम के कारण पेंटिंग्स का रंग फीका पड़ रहा है। मानव गतिविधियां जैसे – गिट्टी तोड़ने वाले स्थानीय लोगों ने कई चट्टानों को नुकसान पहुंचाया है। अतः इन्हें संरक्षण की विशेष आवश्यकता है।
- इतिहासकारों का मानना है कि जिस तरह भीमबेटका को संरक्षण और पर्यटन के लिहाज से बढ़ावा दिया गया है, सिरमौर के इन शैलचित्रों को भी वैसा ही महत्व मिलना चाहिए।
- सिरमौर की रॉक पेंटिंग्स का एक दिलचस्प पहलू यह है कि मौसम के अनुसार इनके रंग बदलते हैं। गर्मियों में ये चित्र हल्के और फीके नजर आते हैं, जबकि बरसात के मौसम में ये गहरे और स्पष्ट दिखते हैं।
- स्थानीय समुदायों में इन शैलचित्रों के महत्व के प्रति जागरूकता की कमी है। जिससे लोग इन दुर्लभ धरोहरों को लेकर लापरवाह हैं। कई चट्टानों पर अनावश्यक छेड़छाड़ और तोड़फोड़ हो रही है।
- इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का कहना है कि यदि इन पेंटिंग्स को सही तरीके से संरक्षित किया जाए, तो यह क्षेत्र न केवल पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन सकता है, बल्कि वैश्विक धरोहर के रूप में भी मान्यता प्राप्त कर सकता है।