भारत के सात प्राकृतिक स्थल यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर सूची में शामिल, कुल संख्या 69 पहुंची

भारत के सात प्राकृतिक स्थल यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर सूची में शामिल, कुल संख्या 69 पहुंची

  • भारत के सात प्राकृतिक स्थलों को यूनेस्को की अस्थायी विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। इन स्थलों में शामिल हैं –
  1. डेक्कन ट्रैप्स (पंचगनी और महाबलेश्वर), महाराष्ट्र
  2. सेंट मैरी द्वीप की भूवैज्ञानिक धरोहर, कर्नाटक
  3. मेघालय की गुफाएं
  4. नागा हिल ओफियोलाइट, नागालैंड
  5. एर्रा मट्टी डिब्बालू, आंध्र प्रदेश
  6. तिरुमला पहाड़ियां, आंध्र प्रदेश
  7. वर्कला चट्टानें, केरल
  • इसके साथ ही भारत की अस्थायी सूची में अब कुल 69 स्थल हो गए हैं।
  • संस्कृति मंत्रालय ने बताया कि इन नए स्थलों के जुड़ने के बाद भारत के पास अब यूनेस्को की अस्थायी सूची में 49 सांस्कृतिक, 17 प्राकृतिक और 3 मिश्रित धरोहर स्थल हैं।
  • यह सूची भविष्य में विश्व धरोहर सूची में नामांकन के लिए अनिवार्य होती है। इन स्थलों के नामांकन का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने किया है, जो भारत में विश्व धरोहर सम्मेलन का नोडल एजेंसी है। एएसआई ने ही इन स्थलों को संकलित कर यूनेस्को को प्रस्तुत किया।
  • याद रहे भारत ने जुलाई 2024 में नई दिल्ली में यूनेस्को की 46वीं विश्व धरोहर समिति की बैठक की मेजबानी की थी। इस बैठक में 140 से अधिक देशों के 2,000 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया।
  1. महाराष्ट्र के पंचगनी और महाबलेश्वर स्थित डेक्कन ट्रैप्स – पंचगनी और महाबलेश्वर का क्षेत्र दुनिया के कुछ सबसे अच्छी तरह संरक्षित और अध्ययन किए गए लावा प्रवाहों का घर है। ये प्रवाह विशाल डेक्कन ट्रैप का हिस्सा हैं और कोयना वन्यजीव अभयारण्य के भीतर स्थित हैं, जो पहले से ही पश्चिमी घाट के हिस्से के रूप में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल में शामिल है। यह क्षेत्र ज्वालामुखीय गतिविधियों, भूवैज्ञानिक इतिहास और वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण क्रेटेशियस–पैलियोजीन (Cretaceous–Paleogene) विलुप्ति घटना के अध्ययन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है।
  2. कर्नाटक का सेंट मैरी द्वीप समूह – सेंट मैरी द्वीप समूह अपनी दुर्लभ स्तंभाकार बेसाल्टिक संरचनाओं के लिए प्रसिद्ध है। यह भूवैज्ञानिक संरचना उत्तर क्रेटेशियस काल की है, जिसका निर्माण लगभग 85 मिलियन वर्ष पूर्व हुआ था। यह द्वीप समूह न केवल प्राचीन ज्वालामुखीय गतिविधियों का प्रमाण प्रस्तुत करता है, बल्कि यह गोंडवाना महाद्वीप के टूटने और भारतीय उपमहाद्वीप के एशिया की ओर खिसकने की भूवैज्ञानिक कहानी को भी दर्शाता है।
  3. मेघालय की गुफाएं – मेघालय की गुफा प्रणालियाँ विश्व की सबसे लंबी और जटिल गुफा प्रणालियों में से एक हैं। इनमें से माव्लुह गुफा विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मेघालय युग (Holocene Epoch) के लिए वैश्विक स्तर पर संदर्भ बिंदु (Global Stratigraphic Reference Point) के रूप में मान्यता प्राप्त है। इन गुफाओं के भीतर पाई जाने वाली संरचनाएँ जलवायु परिवर्तन, मानसूनी पैटर्न और भूवैज्ञानिक विकास की अनूठी कहानियाँ बयां करती हैं।
  4. नागालैंड की नागा हिल ओफियोलाइट – नागा हिल ओफियोलाइट महासागरीय परत के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करती है जो टेक्टोनिक प्रक्रियाओं के कारण महाद्वीपीय सतह पर आ गया है। यह स्थल ओफियोलाइट चट्टानों का दुर्लभ प्रदर्शन प्रस्तुत करता है और प्लेट विवर्तनिकी, मध्य-महासागरीय रिज की गतिशीलता और पृथ्वी की आंतरिक संरचना को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  5. आंध्र प्रदेश की एर्रा मट्टी डिब्बालु (लाल रेत की पहाड़ियां) – विशाखापत्तनम के निकट स्थित एर्रा मट्टी डिब्बालु, जिन्हें लाल रेत की पहाड़ियां कहा जाता है, अपनी विशिष्ट भू-आकृति विज्ञान और लाल रंग की रेत संरचनाओं के लिए जानी जाती हैं। यह स्थल पृथ्वी के जलवायु इतिहास और तटीय भू-आकृति विज्ञान के विकास की कहानी को उजागर करता है। इन पहाड़ियों से वैज्ञानिकों को प्राचीन जलवायु (palaeo-climate) और समुद्र स्तर में हुए परिवर्तनों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
  6. आंध्र प्रदेश की तिरुमला पहाड़ियां – तिरुमला पहाड़ियां अपनी भूवैज्ञानिक विशिष्टताओं के कारण अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। यहाँ स्थित Great Eparchean Unconformity पृथ्वी के 1.5 अरब वर्षों से भी अधिक के भूवैज्ञानिक अंतराल का प्रतिनिधित्व करता है। इसके अतिरिक्त यहाँ प्रसिद्ध सिलाथोरनम नामक प्राकृतिक मेहराब भी मौजूद है, जो भूविज्ञान के साथ-साथ सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी मूल्यवान है।
  7. केरल की वर्कला चट्टानें – केरल के समुद्र तट पर स्थित वर्कला की चट्टानें अपनी प्राकृतिक सुंदरता और वैज्ञानिक महत्व के लिए जानी जाती हैं। ये चट्टानें मायो-प्लियोसीन काल की वर्कल्ली संरचना को प्रदर्शित करती हैं। इनके बीच से बहने वाले प्राकृतिक झरने और अपरदन से निर्मित भू-आकृतियाँ न केवल भूवैज्ञानिक अनुसंधान में सहायक हैं बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी अत्यधिक आकर्षक हैं।

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