
विधेयक पेश करने का मकसद
- 20 अगस्त 2025 को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन महत्वपूर्ण संशोधन विधेयक पेश किए।
- इनका मुख्य उद्देश्य यह है कि अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश का मंत्री गंभीर आपराधिक मामलों (जिनमें जेल की सजा कम से कम 5 वर्ष हो सकती है) में 30 लगातार दिनों तक हिरासत में रहे, तो 31वें दिन उन्हें पद से हटाया जा सकता है, इस्तीफ़ा देना आवश्यक नहीं है।
- सरकार का कहना है कि इससे शासन की विश्वसनीयता बनी रहेगी और जनता का विश्वास मजबूत होगा।
कौन-कौन से विधेयक पेश हुए?
संविधान (130वाँ संशोधन) विधेयक, 2025
- इसमें अनुच्छेद 75 (प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री) में संशोधन का प्रस्ताव है।
- यदि प्रधानमंत्री या कोई केंद्रीय मंत्री लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन उसका पद स्वतः समाप्त हो जाएगा।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025
- जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री और मंत्रियों पर भी यही नियम लागू होगा।
केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025
- दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में मुख्यमंत्री और मंत्रियों के लिए यह व्यवस्था लागू होगी।
हटाने का प्रावधान
- यदि किसी प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री पर ऐसा अपराध साबित होता है, जिसकी सजा कम से कम 5 वर्ष की हो सकती है और वह लगातार 30 दिन तक जेल या हिरासत में रहता है, तो वह 31वें दिन स्वतः पद से हटा दिया जाएगा।
- उसके इस्तीफे की आवश्यकता नहीं होगी, यानी कानून अपने आप पद खाली मान लेगा।
किसके पास होगी हटाने की शक्ति?
- प्रधानमंत्री → राष्ट्रपति द्वारा हटाए जाएंगे।
- मुख्यमंत्री → राज्यपाल या केंद्र शासित प्रदेश में उपराज्यपाल हटाएगा।
- राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के मंत्री → मुख्यमंत्री (राज्यों में) या उपराज्यपाल (UTs में) हटाएगा।
रिहाई के बाद क्या होगा?
- यदि हिरासत में रहने वाला व्यक्ति बाद में रिहा हो जाता है, तो उसे फिर से उसी पद पर नियुक्त किया जा सकता है। विधेयक में यह प्रावधान विकल्प के रूप में रखा गया है।
संवैधानिक बदलाव
- इन विधेयकों के जरिए संविधान में ये संशोधन प्रस्तावित हैं:
- अनुच्छेद 75 → प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रियों से संबंधित प्रावधान।
- अनुच्छेद 164 → मुख्यमंत्री और राज्यों के मंत्रियों से संबंधित प्रावधान।
- अनुच्छेद 239AA → दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री और मंत्रियों से जुड़े प्रावधान।
विधेयक का उद्देश्य
- सरकार का दावा है कि यह कानून राजनीतिक जवाबदेही (Political Accountability) और संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) को मजबूत करेगा।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि गंभीर आपराधिक आरोपों में फँसा व्यक्ति सत्ता में बना न रहे।
- जनता का विश्वास शासन पर बना रहेगा।
- उच्च संवैधानिक पदों पर बैठे नेताओं की छवि और नैतिकता सुरक्षित रहेगी।
संसदीय प्रक्रिया और अगला चरण
- तीनों विधेयक लोकसभा में पेश किए जाने के बाद अब संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee – JPC) को भेजे जाएंगे।
- समिति इन पर विस्तार से चर्चा और समीक्षा करेगी।
- इसके बाद इन्हें संसद के दोनों सदनों से पारित कराकर कानून बनाया जाएगा।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
- जैसे ही विधेयक लोकसभा में पेश किए गए, विपक्षी दलों ने जमकर हंगामा किया।
- कई सांसदों ने आरोप लगाया कि यह विधेयक सत्ता के दुरुपयोग का साधन बन सकता है।
- कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने विधेयक की प्रतियाँ फाड़कर हवा में लहराईं।
- विपक्ष का कहना है कि इस कानून का इस्तेमाल राजनीतिक बदले के लिए किया जा सकता है।
सरकार का जवाब
- गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि विपक्ष केवल बिना कारण विरोध कर रहा है। उनका कहना है कि यह कानून केवल उन नेताओं पर लागू होगा जो गंभीर अपराधों में लंबे समय तक हिरासत में रहते हैं।
- उन्होंने भरोसा दिलाया कि इससे ईमानदार नेताओं को कोई नुकसान नहीं होगा।
- अमित शाह ने जोर देकर कहा कि सरकार जनता के विश्वास और संविधान की गरिमा बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
सारांश:
- इन विधेयकों के पारित होने के बाद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या कोई भी मंत्री यदि गंभीर अपराध में 30 दिन तक जेल में रहेगा, तो उसे 31वें दिन अपने पद से स्वतः हटना पड़ेगा। रिहाई के बाद उसे दोबारा नियुक्त किया जा सकता है। सरकार का कहना है कि यह कदम लोकतंत्र को मजबूत करेगा, जबकि विपक्ष का आरोप है कि इसका इस्तेमाल राजनीति में प्रतिशोध के लिए किया जा सकता है।