
- केरल के रबर बागानों को एम्ब्रोसिया बीटल (Euplatypus parallelus) और फ्यूजेरियम फफूंद – फ्यूजेरियम एम्ब्रोसिया (Fusarium ambrosia) तथा फ्यूजेरियम सोलानी (Fusarium solani) के सहजीवी संबंध से गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है।
- यह कीट और फंगस का संयोजन रबर के पेड़ों को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे रबर उत्पादन और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है।
एम्ब्रोसिया बीटल:
- यह एक कीट है जो रबर के पेड़ों पर हमला करता है।
फ्यूजेरियम एम्ब्रोसिया और फ्यूजेरियम सोलानी:
- ये दो प्रकार के फंगस हैं जो एम्ब्रोसिया बीटल के साथ सहजीवी संबंध में रहते हैं।
- एम्ब्रोसिया बीटल पेड़ों के जाइलम में सुराख़ कर फ्यूजेरियम कवक पहुँचाते हैं जिससे पानी का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है तथा पत्तियाँ गिरने लगती हैं, तना सूख जाता है, लेटेक्स की उपज कम हो जाती है तथा पेड़ नष्ट हो जाते हैं।
- इससे पेड़ों के ऊतकों को क्षति पहुँचती है तथा उनकी मरम्मत धीमी हो जाती है।
जाइलम पेड़ों में, जाइलम एक विशेष प्रकार का ऊतक है, जिसका कार्य जड़ों से पत्तियों तक पानी और खनिज लवणों को पहुँचाने है। यह पौधों के संवहनी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जाइलम, जिसे लकड़ी भी कहा जाता है, पौधों को यांत्रिक सहायता भी प्रदान करता है। कुछ जाइलम कोशिकाएं भोजन को भी संग्रहीत करती हैं। जाइलम और फ्लोएम में अंतर: जाइलम और फ्लोएम दोनों ही पौधों में संवहनी ऊतक हैं, लेकिन उनके कार्य अलग-अलग हैं। फ्लोएम, जाइलम के विपरीत, पत्तियों द्वारा बनाए गए भोजन को पौधे के अन्य भागों तक पहुँचाता है। |
पारिस्थितिकी एवं स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ
- यह संकट केवल रबर तक सीमित नहीं है; काजू, सागौन, नारियल, और कॉफी जैसी 80 से अधिक चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियाँ भी इसकी चपेट में हैं।
- फ्यूजेरियम कवक, पौधों, जानवरों, और मानव स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है।
- कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए यह गंभीर स्वास्थ्य खतरा बन सकता है।
- यदि बीटल्स अधिक विषाक्त फफूंदों से सहसंबंध विकसित कर लें तो खतरा और बढ़ सकता है।
नियंत्रण चुनौतियाँ
- संक्रमण का प्रबंधन करना कठिन है, क्योंकि कवक ऊतकों, मिट्टी और भोरों के माध्यम से फैलता है तथा अन्य सूक्ष्मजीवों को नुकसान पहुँचाता है।
निवारण उपाय
- निवारण उपायों में बीटल ट्रैप्स लगाना, संक्रमित हिस्सों को हटाना, एंटिफंगल दवाओं का प्रयोग तथा जैव नियंत्रण विधियाँ जैसे कि प्रतिद्वंद्वी फफूंद, सूक्ष्मजीव संघ तथा आनुवंशिक रूप से परिवर्तित (GM) रबर पौधों का उपयोग शामिल हैं।
रबर
- रबर एक लोचदार पदार्थ है जो रबर के पेड़ों (हेविया ब्रासिलिएन्सिस) के लेटेक्स या दूधिया रस से प्राप्त होता है।यह लेटेक्स मुख्य रूप से पॉलीआइसोप्रीन नामक बहुलक तथा विभिन्न कार्बनिक यौगिकों से मिलकर बना होता है।
- भारत वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक रबर का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- भारत कुल रबर (प्राकृतिक और सिंथेटिक रबर) का पाँचवाँ सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
भारत में रबर उत्पादन
- केरल (90%) और उसके बाद त्रिपुरा (लगभग 9%) अग्रणी उत्पादक राज्य हैं।
- अन्य प्रमुख राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में – कर्नाटक, असम, तमिलनाडु, मेघालय, नगालैंड, मणिपुर, गोवा तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
रबर के उत्पादन हेतु आवश्यक जलवायु परिस्थितियाँ
- रबड़ एक उष्णकटिबंधीय वृक्ष है तथा अमेज़न वर्षावन का स्थानिक है।
- 20°-35°C तापमान,
- 200 सेमी से अधिक वार्षिक वर्षा,
- दोमट या लैटेराइट मिट्टी तथा ढलान वाले या ऊँचे भू-भाग
रबर का व्यापार परिदृश्य:
- 2022-23 में भारत ने 3,700 टन प्राकृतिक रबड़ (NR) का निर्यात किया, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, UAE, यू.के. और बांग्लादेश सबसे बड़े बाज़ार थे।
- वर्ष 2022-23 में भारत ने 5,28,677 टन प्राकृतिक रबर का आयात किया, मुख्य रूप से इंडोनेशिया, थाईलैंड, चीन, दक्षिण कोरिया और जापान से।
भारत का रबर उत्पादन लक्ष्य
- भारत का लक्ष्य 2030 तक 2 मिलियन टन प्राकृतिक रबर उत्पादन प्राप्त करना तथा रोपण क्षेत्रों का विस्तार करना है।
अन्य प्रमुख बिंदु
- भारत सरकार द्वारा 2019 में राष्ट्रीय रबर नीति लायी गयी।
- रबर बोर्ड का मुख्यालय केरल के कोट्टायम में स्थित है।