
- उत्तर प्रदेश का राजकीय नृत्य कथक है।
- यह भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से एक है और इसकी उत्पत्ति उत्तर प्रदेश में हुई है।
- कथक, जिसका नाम “कथा” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है “कहानी” अर्थात् कथा कहे सो कथक कहलाए।
- यह नृत्य शैली कहानियों को व्यक्त करने के लिए भावों, मुद्राओं और पैरों के तालबद्ध आंदोलनों का उपयोग करती है।
- कथक की उत्पत्ति प्राचीन भारत में हुई थी, जहाँ घुमंतू भाट (कथाकार) नृत्य, गीत और संगीत के माध्यम से पौराणिक कथाओं और कहानियों को सुनाते थे. कथक का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। याद रहे प्राचीन काल मे कथक को कुशिलव के नाम से जाना जाता था।
- धीरे-धीरे, खासकर मुगल काल के दौरान यह नृत्य शैली दरबारों में भी लोकप्रिय हो गई। मध्य काल में इसका सम्बन्ध कृष्ण कथा और नृत्य से था।
- कथक नृत्य के तीन मुख्य घराने हैं: जयपुर, लखनऊ और बनारस। अपने अपनी विशिष्ट रचनाओं के लिए विख्यात एक कम प्रसिद्ध ‘रायगढ़ घराना’ भी है।
लखनऊ घराना
- अवध के नवाब वाजिद आली शाह के दरबार में इसका जन्म हुआ। लखनऊ घराने में भावपूर्ण अभिव्यक्ति और नाजुक मुद्राओं पर अधिक ध्यान दिया जाता है
- वर्तमान में, पंडित बिरजु महाराज (अच्छन महाराजजी के बेटे) इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।
जयपुर घराना
- जयपुर घराने में तीव्र पैरों के काम और लयबद्धता पर अधिक जोर दिया जाता है। यहाँ पखवाज का बहुत उपयोग होता है।
- यह कथक का प्राचीनतम घराना है। जयपुर घराने के प्रवर्तक भानु जी (प्रसिद्ध शिव तांडव नर्तक) हैं।
बनारस घराना
- बनारस घराना अपने विशिष्ट शैली और प्रस्तुति के लिए जाना जाता है
- जानकीप्रसाद ने इस घराने को प्रतिष्ठत किया था। यहाँ नटवरी का अनन्य उपयोग होता है एवं पखवाज तबला का इस्तेमाल कम होता है। यहाँ ठाट और ततकार में अंतर होता है। न्यूनतम चक्कर दाएं और बाएँ दोनों पक्षों से लिया जाता है।
रायगढ़ घराना
- छत्तीसगढ़ के महाराज चक्रधार सिंह इस घराने को प्रतिष्ठत की। विभिन्न पृष्ठभूमि के अलग शैलियों और कलाकारों के संगम और तबला रचनाओं से एक अनूठा माहौल बनाया गया था। पंडित कार्तिक राम, पंडित फिर्तु महाराज, पंडित कल्यानदास महांत, पंडित बरमानलक इस घराने के प्रसिद्ध नर्तक हैं।
आज, कथक एक लोकप्रिय और व्यापक रूप से सराहा जाने वाला शास्त्रीय नृत्य रूप है, जिसे नर्तक दुनिया भर में प्रस्तुत करते हैं. यह नृत्य शैली न केवल मनोरंजन का एक रूप है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
वर्तमान समय में पद्मश्री डॉ पुरुषोत्तम दाधीच श्रेष्ठ कथक गुरुजन हैं।