
- उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के आठ ज़िलों (मेरठ, गाज़ियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, हापुड़, बागपत, शामली और मुज़फ्फरनगर) में पटाखों के निर्माण, भंडारण, बिक्री और उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लागू कर दिया है।
- यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप दशहरा और दीपावली से पहले लिया गया, ताकि त्योहारी मौसम में NCR में बढ़ने वाले प्रदूषण स्तर को नियंत्रित किया जा सके।
प्रतिबंध का कानूनी आधार
- इस प्रतिबंध का उल्लंघन पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 15 के अंतर्गत दंडनीय है, जिसके तहत पाँच वर्ष तक का कारावास, एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। बार-बार अपराध करने पर अनुपालन होने तक प्रतिदिन पाँच हजार रुपये का अतिरिक्त जुर्माना लगाया जाएगा। धारा 15 केंद्र सरकार को किसी भी प्राधिकरण या अधिकारी को पर्यावरण संरक्षण से संबंधित कार्यों के लिये निर्देश देने का अधिकार भी प्रदान करती है।
प्रतिबंध के उद्देश्य
- इस कदम का प्रमुख उद्देश्य त्योहारों के समय वायु प्रदूषण में होने वाली वृद्धि को रोकना और नागरिकों को प्रदूषण से उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याओं से सुरक्षित रखना है।
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986
- भोपाल गैस त्रासदी के बाद संसद ने इस अधिनियम को पारित किया, ताकि पर्यावरण और जन-स्वास्थ्य की रक्षा के लिये एक समग्र कानून उपलब्ध हो सके। (याद रहे साल 1972 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में “मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन” हुआ था। भारत ने इस सम्मेलन में भाग लेकर पर्यावरण की रक्षा के लिए कदम उठाने का वादा किया। उसी वादे को पूरा करने के लिए 1986 में यह अधिनियम बनाया गया।)
- यह कानून संविधान के अनुच्छेद 253 के अंतर्गत पारित किया गया और 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये लागू किया गया।
- संविधान का अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण, वन और वन्य जीवन की रक्षा करने का निर्देश देता है, जबकि अनुच्छेद 51A (g) प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य निर्धारित करता है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करे और उसके संरक्षण एवं सुधार में योगदान दे।
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अंतर्गत केंद्र सरकार को प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और प्रत्युत्तर के लिये मानक निर्धारित करने, उत्सर्जन विनियमित करने, प्रदूषणकारी उद्योगों को बंद करने तथा आवश्यक सेवाओं को नियंत्रित करने का अधिकार प्राप्त है।
अपराध और दंड:
- पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 15 के तहत –
- यदि कोई व्यक्ति या उद्योग इस कानून का पालन नहीं करता तो यह अपराध माना जाएगा।
- ऐसे अपराध की शिकायत सरकार या 60 दिन का नोटिस देने वाला कोई नागरिक कर सकता है।
- सज़ा के रूप में पाँच साल तक की जेल, एक लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- यदि अपराध जारी रहता है तो हर दिन पाँच हजार रुपये तक का अतिरिक्त जुर्माना लगेगा।
- यदि उल्लंघन एक साल से भी ज्यादा चलता है तो सज़ा सात साल तक हो सकती है।
कमियाँ:
- सारी शक्तियाँ केवल केंद्र सरकार के पास हैं, राज्य सरकार की कोई बड़ी भूमिका नहीं है।
- इसमें आम जनता की भागीदारी का प्रावधान नहीं है, जबकि पर्यावरण की रक्षा में लोगों की भूमिका ज़रूरी है।
- कुछ आधुनिक प्रदूषण जैसे शोर, यातायात का दबाव और विकिरण को इसमें शामिल नहीं किया गया है।