
- भारत आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में तेज़ी से प्रगति कर रहा है। इसी दिशा में हाल ही में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। BioE3 नीति (Economy, Environment and Employment for Biotechnology) के एक वर्ष पूरे होने पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क (National Biofoundry Network) लॉन्च किया। यह कदम भारत की बायोइकॉनमी को बढ़ावा देने और जैव प्रौद्योगिकी (Biotechnology) को विकास का प्रमुख साधन बनाने की दिशा में अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
बायोइकॉनमी क्या है?
- बायोइकॉनमी का मतलब है जैविक संसाधनों (पौधे, सूक्ष्मजीव, बायो-वेस्ट आदि) का उपयोग करके उत्पाद, सेवाएँ और प्रक्रियाएँ विकसित करना।
- इसमें वैज्ञानिक ज्ञान, तकनीक और नवाचार का प्रयोग होता है ताकि अर्थव्यवस्था सतत् और समावेशी बने।
- भारत की बायोइकॉनमी वर्ष 2014 में 10 अरब डॉलर से बढ़कर वर्ष 2024 में 165.7 अरब डॉलर तक पहुँच गई है।
- सरकार का लक्ष्य है कि इसे वर्ष 2030 तक 300 अरब डॉलर तक पहुँचाया जाए।
राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क
- इस नेटवर्क में 6 प्रमुख संस्थान शामिल किए गए हैं।
- इनका उद्देश्य है—प्रयोगशालाओं से निकलकर उद्योग तक नवाचार पहुँचाना, जैव विनिर्माण (Bio-manufacturing) को मजबूत करना और स्टार्टअप्स को मदद देना।
- इसे बायोटेक्नोलॉजी विभाग (DBT) द्वारा लागू किया जा रहा है।
- इसमें बायोफाउंड्रीज, बायोमैन्युफैक्चरिंग हब और बायो-AI हब बनाए जा रहे हैं, ताकि शोधकर्ताओं और स्टार्टअप्स को साझा सुविधाएँ मिल सकें।
BioE3 नीति का महत्व
- यह नीति 2024 में स्वीकृत हुई थी।
- इसका उद्देश्य है—नवाचार आधारित शोध, जैव प्रौद्योगिकी का व्यावसायीकरण और हरित विकास (Green Growth) को बढ़ावा देना।
- यह नीति भारत के नेट-ज़ीरो उत्सर्जन और LiFE (Lifestyle for Environment) जैसे लक्ष्यों से जुड़ी हुई है।
भारत की बायोइकॉनमी के लाभ
- कृषि क्षेत्र में लाभ : जैव उर्वरक, जैव कीटनाशक और जलवायु-स्मार्ट कृषि को बढ़ावा। बायोफोर्टिफाइड फसलों और जीन एडिटिंग तकनीकों से उत्पादकता में वृद्धि। Biotech-KISAN जैसी योजनाओं से किसान-वैज्ञानिक साझेदारी और ग्रामीण किसानों की आय में सुधार।
- ऊर्जा क्षेत्र में लाभ : राष्ट्रीय जैवईंधन नीति (2018) से इथेनॉल मिश्रण 2014 में 1.53% से बढ़कर 2025 तक 20% हो गया। इससे भारत ने 1.36 लाख करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा बचाई और CO₂ उत्सर्जन कम किया।
- स्वास्थ्य और बायोफार्मा : भारत विश्व का 65% टीका उत्पादन करता है। विश्व का पहला DNA कोविड-19 टीका भारत में विकसित हुआ। भारत विश्व में तीसरे नंबर पर दवा उत्पादन (वॉल्यूम में) करता है।
- स्टार्टअप और उद्यमिता : बायोटेक स्टार्टअप्स की संख्या 10 साल में 50 से बढ़कर 10,000+ हो गई। BIRAC और Bio-RIDE जैसी योजनाएँ स्टार्टअप्स को वित्तीय सहयोग और परामर्श देती हैं।
सामाजिक और आर्थिक लाभ
- बायोइकॉनमी टियर-II और टियर-III शहरों में रोजगार देती है।
- MSMEs को मज़बूती मिलती है और ग्रामीण विकास में तेजी आती है।
प्रमुख चुनौतियाँ
- वित्तीय कमी: DBT का बजट GDP का 1% से भी कम है।
- उच्च लागत: बायोफाउंड्री और बायोमैन्युफैक्चरिंग केंद्र स्थापित करना महँगा है।
- नैतिक और नियामक चिंताएँ: GMO और सिंथेटिक बायोलॉजी पर सामाजिक संदेह।
- विशेषज्ञता की कमी: भारत में बायोइन्फॉरमैटिक्स और सिंथेटिक बायोलॉजी विशेषज्ञ पर्याप्त नहीं हैं।
- पर्यावरणीय खतरे: जैव-आधारित उत्पादन से वनों की कटाई और बायो-वेस्ट समस्याएँ हो सकती हैं।
समाधान और आगे का रास्ता
- नियामक सुधार: सिंगल-विंडो अप्रूवल सिस्टम और स्पष्ट दिशा-निर्देश।
- नवाचार प्रोत्साहन: BIRAC जैसी संस्थाओं को और मज़बूत करना।
- वित्तीय सहयोग: DBT का बजट बढ़ाना और निजी निवेश को प्रोत्साहन।
- कौशल विकास: बायो-टेक्नोलॉजी और बायोमैन्युफैक्चरिंग में सेंटर ऑफ एक्सीलेंस स्थापित करना।
- सार्वजनिक जागरूकता: GMO और बायो उत्पादों को लेकर सही जानकारी देना।
निष्कर्ष
- राष्ट्रीय बायोफाउंड्री नेटवर्क और BioE3 नीति भारत को वैश्विक बायोटेक शक्ति बनाने की दिशा में आधारशिला हैं।
- ये न केवल आर्थिक वृद्धि को गति देंगे, बल्कि सतत विकास, ऊर्जा सुरक्षा, स्वास्थ्य सुधार और रोजगार सृजन में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
- यदि चुनौतियों का समाधान सही समय पर किया गया तो वर्ष 2047 तक भारत एक बायो-आधारित और हरित अर्थव्यवस्था के रूप में उभर सकता है।