
चर्चा में क्यों है?
- भारतीय जनता पार्टी के सांसद मनोज तिवारी ने केंद्रीय गृहमंत्री से अनुरोध किया है कि भोजपुरी के प्रतिष्ठित कवि, नाटककार, लोकगायक और समाज सुधारक भिखारी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया जाए।
- इस प्रस्ताव का किसी भी राजनीतिक दल द्वारा विरोध नहीं किया गया है, जो इस बात का संकेत है कि भिखारी ठाकुर के प्रति सभी दलों में गहरा सम्मान है।
भिखारी ठाकुर: व्यक्तित्व और योगदान
- भिखारी ठाकुर का जन्म 1887 में बिहार के सारण जिले के कुतुबपुर दियारा गाँव में हुआ था।
- उन्हें आमतौर पर “भोजपुरी के शेक्सपियर” की उपाधि दी जाती है।
- साहित्यिक कृतियाँ:
- उन्होंने कुल 29 पुस्तकें लिखीं।
- उनकी पहली पुस्तक ‘बटोहीया’ वर्ष 1912 में प्रकाशित हुई थी।
- उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक ‘बिदेशिया’ है, जो प्रवासन के कारण उत्पन्न वियोग और सामाजिक ताने-बाने को दर्शाता है।
- प्रमुख नाटक और सामाजिक सरोकार:
- ‘बेटी बेचवा’, ‘गबर घिचोर’ और ‘अछूत की शिकायत’ जैसे नाटकों के माध्यम से उन्होंने बाल विवाह, दहेज प्रथा, अस्पृश्यता जैसे सामाजिक मुद्दों को मंच पर प्रस्तुत किया।
- ‘अछूत की शिकायत’ में मुख्य पात्र हीरा डोम एक दलित व्यक्ति है, जो समाज की जातिगत विषमता को उजागर करता है।
- मुख्य विषयवस्तु:
- उनके लेखन में बाल विवाह, जातीय भेदभाव, लैंगिक असमानता, नशाखोरी, प्रवासन और विस्थापन जैसे ज्वलंत मुद्दों को गंभीरता से उठाया गया है।
- भिखारी ठाकुर की विरासत:
- भिखारी ठाकुर आज भी भोजपुरी अस्मिता और बिहार की सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक माने जाते हैं। वे बाद में कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) चले गए, जहाँ उन्होंने प्रवासी श्रमिकों के जीवन संघर्ष को करीब से देखा। यही अनुभव उनके साहित्य की गहराई और विषयवस्तु का आधार बना।
- उनकी स्थापित नाट्य परंपरा और लोक संगीत आज भी जनमानस को सामाजिक चेतना से जोड़ने का सशक्त माध्यम बने हुए हैं।