भूमि अधिग्रहण कानून: एक विस्तृत अवलोकन

भूमि अधिग्रहण कानून: एक विस्तृत अवलोकन

  • भूमि अधिग्रहण का तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जिसके तहत केंद्र या राज्य सरकार सार्वजनिक हित में विकास परियोजनाओं के लिए नागरिकों की निजी संपत्ति का अधिग्रहण करती है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे के विकास, औद्योगीकरण और अन्य गतिविधियों के लिए आवश्यक होती है। भूमि अधिग्रहण के दौरान प्रभावित व्यक्तियों को उचित मुआवजा और पुनर्वास सहायता प्रदान की जाती है।

भूमि अधिग्रहण कानून की आवश्यकता क्यों है?

देश के विकास के लिए औद्योगीकरण और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को बढ़ावा देना आवश्यक है। हालांकि, यह भी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इस प्रक्रिया में समाज के कमजोर वर्गों के हितों की रक्षा हो। भूमि अधिग्रहण में सरकार निम्नलिखित भूमिकाएँ निभाती है:

  • परियोजना के लिए भूमि की व्यवस्था: सरकार यह सुनिश्चित करती है कि परियोजना के लिए आवश्यक भूमि की उपलब्धता हो। यदि सरकार मध्यस्थता न करे, तो भूमि मालिक अपनी संपत्ति की मनमानी कीमत मांग सकते हैं, जिससे परियोजना में देरी या रद्द होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • उचित मुआवजा: सरकार यह सुनिश्चित करती है कि भूमि मालिकों को उनकी भूमि का उचित मूल्य मिले और प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जाए।
  • शोषण से बचाव: निजी कंपनियों द्वारा भूमि खरीद प्रक्रिया में भूमि मालिकों के शोषण को रोकने के लिए सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।

भूमि अधिग्रहण के कानूनी प्रावधान

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894

ब्रिटिश शासन के दौरान भूमि अधिग्रहण के लिए 1894 में एक अधिनियम पारित किया गया था। इस अधिनियम के तहत सरकार को भूमि अधिग्रहण के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं का पालन करना होता था:

  • भूमि का अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य के लिए किया जाए।
  • भूमि मालिकों को उचित मुआवजा प्रदान किया जाए।
  • अधिग्रहण की प्रक्रिया में अधिनियम के नियमों का पालन किया जाए।

1894 के अधिनियम की कमियाँ

  1. भूमि पर निर्भर लोगों के हितों की उपेक्षा: इस अधिनियम में केवल भूमि मालिकों को मुआवजा प्रदान करने का प्रावधान था। भूमि पर निर्भर श्रमिकों और अन्य सेवा प्रदाताओं के हितों की अनदेखी की गई।
  2. सार्वजनिक उद्देश्य की अस्पष्टता: अधिनियम में सार्वजनिक उद्देश्य की कोई स्पष्ट व्याख्या नहीं थी, जिससे कानून का दुरुपयोग हुआ।
  3. कम मुआवजा: भू-मालिकों को बाजार मूल्य से कम मुआवजा दिया जाता था, जिससे वे आर्थिक नुकसान का सामना करते थे।
  4. इमरजेंसी क्लॉज़ का दुरुपयोग: आपातकालीन प्रावधान का दुरुपयोग कर सरकार ने कई बार भू-मालिकों से उनकी भूमि जबरन छीन ली।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013

इस अधिनियम को “भूमि अधिग्रहण, पुनरुद्धार और पुनर्वासन में उचित प्रतिकार तथा पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013” (Right to Fair Compensation and Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation and Resettlement Act, 2013) के नाम से जाना जाता है। यह अधिनियम 1894 के पुराने कानून की कमियों को दूर करने के लिए लागू किया गया।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

  1. सार्वजनिक उद्देश्य की स्पष्ट व्याख्या: अधिनियम में सरकार के लिए सार्वजनिक उद्देश्य की स्पष्ट परिभाषा दी गई है, जिससे कानून के दुरुपयोग की संभावना कम हो।
  2. सहमति की अनिवार्यता: निजी परियोजनाओं के लिए 80% भूमि मालिकों की सहमति और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) परियोजनाओं के लिए 70% भूमि मालिकों की सहमति आवश्यक है।
  3. उचित मुआवजा और पुनर्वास: ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि के लिए बाजार मूल्य का चार गुना और शहरी क्षेत्रों में बाजार मूल्य से दोगुना मुआवजा दिया जाता है।
  4. विवाद निवारण तंत्र: भूमि अधिग्रहण से संबंधित विवादों के समाधान के लिए कलेक्टर द्वारा एक निश्चित समय सीमा के भीतर विवादों का निपटारा किया जाता है।
  5. भूमि उपयोग की समय सीमा: यदि अधिग्रहण के बाद 5 वर्षों के भीतर भूमि का उपयोग नहीं किया जाता है, तो वह भूमि भू-मालिक को वापस कर दी जाएगी।
  6. आपातकालीन परिस्थितियाँ: राष्ट्रीय सुरक्षा या प्राकृतिक आपदा जैसी आपातकालीन परिस्थितियों में सरकार को संसद की मंजूरी के बाद भूमि अधिग्रहण करने का विशेष अधिकार दिया गया है।

भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया

  1. भूमि अधिग्रहण अधिकारी की नियुक्ति: राज्य या केंद्र सरकार के निर्देश पर जिला अधिकारी या कलेक्टर को भूमि अधिग्रहण अधिकारी नियुक्त किया जाता है।
  2. अधिसूचना जारी करना: भूमि अधिग्रहण अधिकारी प्रस्तावित भूमि का निरीक्षण करता है और अधिसूचना जारी करता है। यह अधिसूचना आधिकारिक गजट, स्थानीय समाचार-पत्रों और अन्य माध्यमों से जारी की जाती है।
  3. आपत्तियों का निपटारा: अधिसूचना जारी होने के बाद कोई भी व्यक्ति मुआवजे या अन्य विवादों के संबंध में आवेदन कर सकता है। भूमि अधिग्रहण अधिकारी को एक वर्ष के भीतर इन विवादों का निपटारा करना होता है।
  4. भूमि पर कब्जा: सभी विवादों का निपटारा होने के बाद, सरकार प्रस्तावित क्षेत्र पर बाड़ लगाने और भूमि का उपयोग करने की अनुमति देती है।
  5. पुनर्वास और मुआवजा: प्रभावित व्यक्तियों को मुआवजा प्रदान किया जाता है और पुनर्वास सहायता दी जाती है।

भूमि अधिग्रहण से जुड़ी चुनौतियाँ

  1. अकुशल श्रमिकों के लिए चुनौतियाँ: भूमि अधिग्रहण के बाद कई लोगों को रोजगार की समस्या होती है।
  2. जटिल प्रक्रिया: भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया जटिल और लंबी होती है, जिससे प्रभावित लोगों को मुआवजा मिलने में देरी होती है।
  3. अन्य हितधारकों की अनदेखी: भूमि पर निर्भर अन्य व्यक्तियों जैसे मजदूर, छोटे व्यापारी आदि को मुआवजे और पुनर्वास में उचित सहायता नहीं मिलती।

निष्कर्ष

भूमि अधिग्रहण देश के विकास के लिए एक आवश्यक प्रक्रिया है। हालाँकि, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि प्रभावित लोगों के हितों की रक्षा हो और उन्हें उचित मुआवजा और पुनर्वास सहायता प्रदान की जाए। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 ने इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। फिर भी, भूमि अधिग्रहण से जुड़ी चुनौतियों को हल करने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने की आवश्यकता है।

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