मध्यप्रदेश के बड़वानी जिले में सतपुड़ा की हरियाली से आच्छादित पहाड़ियों पर स्थित नागलवाड़ी शिखरधाम एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहाँ आस्था, अध्यात्म और प्रकृति का अद्भुत समागम होता है। यह धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह लोक आस्थाओं, जनकथाओं और सांस्कृतिक धरोहर का भी जीवंत केंद्र है।
भीलटदेव मंदिर: श्रद्धा का केंद्र
- सतपुड़ा की ऊँचाई पर 2200 मीटर की समुद्र तल से स्थित भीलटदेव मंदिर करीब 800 वर्ष पुराना है।
- वर्ष 2004 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार गुलाबी पत्थरों से किया गया, जिससे इसकी वास्तुशिल्पीय शोभा और बढ़ गई।
- यह मंदिर मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर स्थित है और तीर्थयात्रियों के लिए अत्यंत पावन स्थल माना जाता है।
भीलटदेव की कथा: नागदेव के रूप में आराधना
- लोकमान्यता के अनुसार भीलटदेव, नागदेवता के अवतारी पुरुष माने जाते हैं।
- इनका जन्म विक्रम संवत 1220 में हरदा जिले के रोलगांव में हुआ था। उनके माता-पिता भोलेनाथ के परम भक्त थे।
- जब भगवान शिव उनकी सेवा से प्रसन्न हुए, तो उन्होंने संतान का वरदान दिया। परंतु बालक को शीघ्र ही उठा लिया और पालने में नागदेव को छोड़ दिया गया।
- तभी से नाग पंचमी के दिन नागदेव और भीलटदेव की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है।
किन्नर परंपरा से जुड़ी लोककथा
- लगभग 200 वर्ष पूर्व की मान्यता के अनुसार एक किन्नर ने भीलटदेव से संतान प्राप्ति की कामना की थी। आशीर्वाद से उसे गर्भ ठहर गया, परंतु उसकी मृत्यु हो गई।
- तब से मान्यता बन गई कि किन्नर रात्रि में शिखरधाम में नहीं रुकते और सूर्यास्त से पूर्व गांव की सीमा से बाहर चले जाते हैं।
- सेगांव रोड पर आज भी उस किन्नर की समाधि शिला स्थापित है।

