एनजीटी ने जम्मू-कश्मीर को नोटिस जारी किया — ब्रेन·निशात संरक्षण आरक्षित क्षेत्र में CRPF कैंप की योजना पर सवाल

एनजीटी ने जम्मू-कश्मीर को नोटिस जारी किया — ब्रेन·निशात संरक्षण आरक्षित क्षेत्र में CRPF कैंप की योजना पर सवाल

  • राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने जम्मू-कश्मीर की केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन सहित अन्य सम्बद्ध पक्षों को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस उस याचिका पर आधारित है जिसमें ब्रेन-निशात (Brein-Nishat) संरक्षण आरक्षित क्षेत्र में 1,324 कनाल (लगभग 67 हेक्टेयर) भूमि पर CRPF का एक कैंप (तम्बू और बटालियन का ठिकाना) स्थापित करने की प्रस्तावित योजना को चुनौती दी गई है।
    Greater Kashmir
  • प्रस्तावित कैंप और याचिका का आधार
    याचिकाकर्ता (73 वर्ष के गुलाम मोहिउद्दीन शाह व अन्य) का कहना है कि जिस भूमि पर कैंप प्रस्तावित है, वह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील है और संरक्षित आरक्षित क्षेत्र (Conservation Reserve) घोषित की गई है।
  • यह जमीन डचिगाम (Dachigam) राष्ट्रीय उद्यान के कैचमेंट क्षेत्र में आती है और वन्यजीव (संरक्षा) अधिनियम, 1972 तथा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की उपाधीन है।
  • श्रीनगर मास्टर प्लान 2035 में यह क्षेत्र एक बफर जोन / हरित पट्टी (green belt) के रूप में चिह्नित किया गया है, जहाँ निर्माण कार्य निषिद्ध हैं।
  • पर्यावरणीय और भौतिक जोखिम
    याचिका में उल्लेख है कि प्रस्तावित निर्माण कार्य में ज़बरवन पर्वत श्रेणी में कटाई और स्तरकरण करना होगा, जो भूकंपीय दृष्टि से खतरनाक है क्योंकि यह क्षेत्र सक्रिय भूकंपीय ज़ोन 4 और 5 में आता है।
  • साथ ही, भारी धातु, रसायन और विस्फोटक उपकरणों से होने वाला प्रदूषण आसपास के जल स्रोतों—विशेषतः डल झील (करीब 200 मीटर दूर)—पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
  • जैव विविधता को भी बड़ा खतरा है: उक्त क्षेत्र में critically endangered (गंभीर रूप से संकटग्रस्त) हंगल (काश्मिरी हिरण), एशियाई काला भालू और अन्य अनुसूची-I प्रजातियाँ निवास करती हैं।
  • न्यायालय की कार्रवाई
    NGT की पीठ (न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और डॉ. ए. सेनथिल वेल) ने मूल याचिका और अंतरिम राहत की मांग पर सुनवाई की।
  • याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया गया है कि वे सभी पक्षों को नोटिस भेजें और सेवा की पुष्टि करें।
  • अधीनस्थ पक्षों (प्रशासन, सुरक्षा बल आदि) को अपनी जवाबी हलफनामा निबंधित करने का आदेश दिया गया है, आगामी सुनवाई से एक सप्ताह पहले।
  • अगली सुनवाई 24 नवंबर 2025 को निर्धारित की गई है।
  • निष्कर्ष और अहम सवाल
    इस मुद्दे में दो अहम हित टकरा रहे हैं — सुरक्षा/रक्षा संबंधी आवश्यकताएँ और पर्यावरणीय सुरक्षा एवं संवेदनशीलता।
  • कुछ विचारणीय बिंदु:
  • क्या सुरक्षा संरचनाएँ अन्य गैर-संवेदनशील स्थानों पर बनाई जा सकती हैं, ताकि पर्यावरणीय क्षति न्यूनतम हो?
  • क्या प्रस्तावित निर्माण के लिए पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन (EIA) तथा सार्वजनिक स्वीकृति ली गई है?
  • सरकार और संरक्षण प्राधिकरणों को एक संतुलित नीति अपनानी होगी, जो सुरक्षा आवश्यकताओं और पर्यावरण की रक्षा — दोनों को ध्यान में रखे।

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